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फिर वही कहानी.. गाजियाबाद में वह 20 मिनट तक सड़क पर तड़पता रहा,लोग सिर्फ बनाते रहे वीडियो

नई दिल्ली

सड़क पर घायल शख्स की फोटो खींचने और वीडियो बनाने वालों की भीड़…अब आपको अपने अगल-बगल में कई जगह पर कई बार ऐसे नजारे दिख जाएंगे. ये बेहद हैरान और परेशान करने वाले हैं. अकसर लोग घायल शख्स को देखकर आगे बढ़ जाते हैं. लेकिन हमें रुक कर ये सोचने की जरूरत है कि अगर आपकी तरह ही आपके किसी अपने को सड़क पर घायल देखकर कोई शख्स मदद करने की जगह आगे बढ़ जाए तो फिर क्या हो? बीते कुछ समय में इस तरह की धटनाएं बढ़ी हैं. और इन्हें देखते हुए ये साफ है कि ऐसे लोगों की ये भीड़ किसी भी सभ्य समाज के लिए एक बड़ी चिंता की तरह है. शुक्रवार को गाजियाबाद में जो घटना हुई है वो भी बेहद परेशान करने वाली है.

यहां IPEM कॉलेज के पास एक बाइक सवार शख्स खून से लथपथ सड़क किनारे पड़ा रहा है. वहां से गुजरने वाला हर शख्स घायल को देखने रुका तो जरूर पर सिर्फ उसकी फोटो खींचने और वीडियो बनाने के लिए. घायल के शरीर से लगातार खून बह रहा था, उसके लिए हर बीतता सेकेंड जिंदगी और मौत के बीच का फासला तेजी से कम करने वाला था. लेकिन भीड़ में खड़ा कोई भी शख्स उसकी मदद करने आगे नहीं आया. गाजियाबाद की घटना में जो शख्स घायल हुआ उसकी पहचान प्रभात कुमार के रूप में की गई है.

फरिश्ता बनकर आया कांस्टेबल
जब लोगों की भीड़ घायल शख्स का वीडियो बनाने और फोटो खींचने में व्यस्त थी,उसी समय अंधेरे में दिए की लौ की तरह सामने आए कांस्टेबल सोनू सिंह. सोनू सिंह ने घायल प्रभात को बगैर समय गंवाए उठाया और बगैर समय गंवाए पास के अस्पताल लेकर पहुंचे.जहां अब प्रभात का इलाज चल रहा है. कांस्टेबल सोनू ने बताया कि जहां पर घटना हुई, उससे कुछ मीटर की दूरी पर ही मेरी ड्यूटी लगी थी. मैंने जब पास ही लोगों की भीड़ देखी तो मैं वहां पहुंचा. मैंने वहां देखा कि घायल की हालत गंभीर है और लोग उसे सिर्फ खड़े-खड़े देख रहे हैं. मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा है.

“और होती देरी तो जा सकती थी जान”
घायल प्रभात का इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि अगर उन्हें अस्पताल तक लाने में कुछ पल की और देरी हो जाती तो उन्हें बचा पाना बेहद मुश्किल हो जाता है. डॉक्टरों के अनुसार इस सड़क हादसे में प्रभात को सिर में गंभीर चोटें आई हैं. सड़क के किनारे घायल हालत में पड़े होने की वजह से उनका काफी खून भी बह गया है. ऐसे में अगर आज प्रभात जिंदा हैं तो उसके लिए कांस्टेबल सोनू के साहस की सराहना की जानी चाहिए.

घायल को हाथों में उठाए लोगों से अनुरोध करता रहा था सोनू
हमारा समाज आज इतना मर सा गया है कि अगर बीच सड़क पर किसी की जान भी जा रही हो तो उसे फर्क नहीं पड़ता है. इसका ही एक उदाहरण हमें उस वक्त देखने को मिला जब सोनू घायल को अपने हाथों में उठाए, वाहन चालकों को रुकने का इशारा कर रहा था, ताकि उसे समय रहते प्रभात को अस्पताल पहुंचाया जा सके. लेकिन कांस्टेबल सोनू के रोकने के बाद भी कोई वाहन चालक नहीं रुका. आखिरकार एक ऑटो वाले की मदद से सोनू प्रभात को लेकर पास के अस्पताल में पहुंचे.

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