बिलासपुर। पितृ पक्ष में बड़ी संख्या में लोग अपने पितृगणों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते रहे हैं। आज से पितृ पक्ष की शुरुआत होने जा रही है। इस दौरान अपने पितरों के सम्मान में उन्हें याद करते हुए उनके नाम का तर्पण करना और भोग लगाना का विशेष महत्त्व है। आचार्य गोविन्द दुबे बताते है कि, पितृ पक्ष वह समय होता है जब पितृगण धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण और पिंडदान की आशा रखते हैं। इस दौरान विधिपूर्वक श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और परिवार पर सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
कौन करते हैं तर्पण
आचार्य गोविन्द दुबे बताते हैं कि, यदि एक से अधिक पुत्र हैं तो ज्येष्ठ पुत्र को यह कर्तव्य निभाना चाहिए। अगर पुत्र नहीं है, तो पत्नी श्राद्ध कर सकती है। उसके भी अभाव में भाई, पौत्र या भतीजे इस कर्तव्य का पालन कर सकते हैं। यह प्रक्रिया परिवार के ऋण से मुक्ति और पितरों को संतुष्टि देने का सबसे महत्वपूर्ण उपाय माना जाता है।
कुश,तिल और जौ का विशेष महत्व
पितृ पक्ष में कुश, तिल और जौ का विशेष महत्व है।आचार्य दुबे के अनुसार श्राद्ध और तर्पण में इन तीनों का उपयोग आवश्यक है। काले तिल भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय माने जाते हैं और इन्हें देव अन्न कहा जाता है। इसलिए पितरों को भी ये प्रिय है। कुशा का भी धार्मिक और पौराणिक महत्व है। इसका उपयोग तर्पण में इसलिए किया जाता है क्योंकि पितरों को कुश से अर्पित किया गया जल अमृत तत्व की तरह मिलता है। जिससे हमारे पितृ तृप्त होते हैं।
कौए का पितृ पक्ष में खास महत्व
कौए को धरती और यमलोक के बीच का दूत माना जाता है। पितृ पक्ष के दौरान अगर कौए आपके घर आते हैं, तो इसे पितरों का संदेशवाहक समझा जाता है। आचार्य दुबे बताते हैं कि कौए के माध्यम से पितृगण अपने वंशजों को संदेश भेजते हैं और उनकी उपस्थिति का संकेत देते हैं। इस कारण से श्राद्ध और तर्पण के समय कौए को भोजन कराना पितरों को संतुष्ट करने का एक अहम हिस्सा होता है।