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थूकने का मनोविज्ञान: क्यों खाने में थूक, पेशाब मिलाने की घटनाएं बढ़ रही हैं, अमेरिका में आरोपी पर लगा डोमेस्टिक टैररिज्म का चार्ज

नई दिल्ली

हाल में गाजियाबाद से एक घरेलू सहायिका के खाने में पेशाब मिलाने का वीडियो जारी हुआ. सहायिका फिलहाल पुलिस की गिरफ्त में है लेकिन इसके बाद से बहस हो रही है कि आखिर किस वजह से लोग ऐसा कर रहे हैं. रेस्त्रां-ढाबों में थूककर खाना परोसते लोगों से लेकर आइसक्रीम में वीर्य मिलाते लोगों तक के वीडियो वायरल हो चुके. भारत ही नहीं, अमेरिका और यूरोप में भी कई ऐसे मामले दिखे. तो क्या ये मनोविज्ञान से जुड़ी कोई बारीक बीमारी है, या जान-बूझकर लोग ऐसा कर रहे हैं?

अपनी ही वीडियो भी बना रहा था

अप्रैल 2020 की बात है, जब अमेरिका के मिसौरी स्टेट में एक शख्स सुपरमार्केट में उत्पादों को चाटता हुआ दिखा. साथ ही साथ वो अपनी वीडियो भी बना रहा था. घटना के वायरल होते ही पुलिस ने डोमेस्टिक टैररिज्म का आरोप लगाते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया. याद दिला दें कि वो कोरोना का दौर था, जब पटापट मौतें हो रही थीं. लेकिन ये आदत इक्का-दुक्का देशों तक सीमित नहीं, न ही कोविड के समय भर ऐसा हुआ था. फूड प्रोडक्ट्स की टैंपरिंग लंबे समय से चली आ रही है.

टैंपरिंग का पहला मामला 19वीं सदी में

सितंबर 1982 में शिकागो में एक ही रोज सात मौतें हुईं. इन सभी ने टायलेनॉल नाम की दवा ली थी. जांच में पता लगा कि इन कैप्सूल्स में साइनाइड मिलाया गया था. इस घटना के बाद अमेरिका में दहशत फैल गई. इस बीच संबंधित कंपनी ने तुरंत मार्केट से अपने सारे उत्पाद उठा लिए. बाद में पुलिस और एफबीआई ने एक शख्स को पकड़ा, लेकिन साबित नहीं हो सका कि मिलावट उसने की है. लिहाजा असल अपराधी कभी पकड़ा नहीं जा सका. प्रोडक्ट टैंपरिंग का ये सबसे पहला उदाहरण था. इसके बाद से दवा के अलावा फूड प्रोडक्ट में साजिशन मिलावट की घटनाएं बढ़ती गईं.

हैम में डाल दी खाद

दिसंबर 2008 में मिशिगन के एक शहर बायरन सेंटर में एक दुकान के कर्मचारी ने हैमबर्गर में पेस्टिसाइड मिलाना शुरू कर दिया. प्रतिबंधित पेस्टिसाइड मिला हुआ खाना खाकर लगभग 100 ग्राहक गंभीर रूप से बीमार हो गए. पकड़े जाने पर कर्मचारी ने माना कि वो अपने सुपरवाइजर पर गुस्सा था और उसका नाम खराब करने के लिए ये सब कर रहा था.

जासूस ने बच्चों के खाने में की थी मिलावट

आम लोग ही नहीं, जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी ऐसा करते दिख चुके. जैसे कुछ समय पहले स्कॉटलैंड यार्ड में जासूस रह चुका एक शख्स बेहद गंभीर हरकत हुए पकड़ा गया. उसने जानी-मानी कंपनी के बेबी फूड में कास्टिक सोडा, रेजर ब्लेड और पिन्स डाल दिए थे.

सोशल मीडिया चैलेंज से बढ़ावा

वेस्ट में सोशल मीडिया चैलेंज के तहत खाने में थूक या यूरिन मिलाने को बढ़ावा मिला. साल 2017 में एक चैलेंज चला, जिसका नाम था- पीइंग इन द फूड. इसमें लड़के दूसरों के खाने में पेशाब डालकर परोस रहे थे, साथ में उसकी वीडियो भी बना रहे थे. कई सोशल प्लेटफॉर्म्स पर खाने में खराब चीजें डालने की चुनौती दी गई. खास बात ये थी कि ऐसा अपने नहीं, बल्कि दूसरों के खाने के साथ करना था.

व्यक्तिगत बायोलॉजिकल अटैक से हो रही तुलना

भारत की बात करें तो यहां खाने में थूकने, चाटने, वीर्य या पेशाब जैसी चीजें मिलाने की घटनाएं लगातार हो रही हैं. ये एक तरह का बायोलॉजिकल अटैक है. बता दें कि इनसे टीबी, हेपेटाइटिस और यहां तक कि कई तरह के यौन रोग होने का भी खतरा रहता है. ये जन्मजात या वक्त के साथ आई मानसिक विकृति नहीं, बल्कि जान-बूझकर दूसरों को परेशान करने का एक तरीका है. इसमें लोग अपने ही शरीर को एक तरह का हथियार बना लेते हैं ताकि दूसरों को तंग किया जा सके. कई बार लोग अलग विचारधारा के लोगों को बीमार करने की मानसिकता से भी ऐसा करते हैं.

पुलिस लेकर आई एंटी-स्पिट हुड

पश्चिमी देशों में ऐसी घटनाएं इतनी ज्यादा हो चुकीं कि वहां की पुलिस को एंटी-स्पिट हु़ड बनानी पड़ गई. ये एक ऐसा उपकरण है, जिसे पुलिस और सुरक्षा अधिकारी उस व्यक्ति के चेहरे पर लगाते हैं, जो गिरफ्तारी के दौरान या हिरासत में लिए जाते समय थूकने या काटने की कोशिश करता है. एंटी स्पिट हुड का इस्तेमाल कई देशों में हो रहा है, जैसे अमेरिका, यूके, कनाडा, और ऑस्ट्रेलिया.

यहां जेलों के अलावा डिटेंशन सेंटरों पर भी ये हुड दिख जाएंगे. बता दें कि अक्सर शरण लेने के अवैध ढंग से दूसरे देश पहुंचे लोग भी ऐसा करते हैं. खुद को संक्रमित होने से बचाने के लिए पुलिस उन्हें हुड पहना देती है.

नाराज प्रोफेशनल भी करते हैं ऐसा

थूकने, गंदा करने जैसे काम घरेलू या लोकल दुकानदार के स्तर पर नहीं, बल्कि बड़े स्तर पर भी होते हैं. जैसे जब कर्मचारी और मालिक के बीच रिश्ते खराब हो जाएं तो मालिक की इमेज को नुकसान पहुंचाने के लिए भी कई बार कर्मचारी ऐसी हरकतें करते हैं. फूड इंडस्ट्री में ये सबसे आसान तरीका है, जिससे कारोबार को बड़ा धक्का लगाया जा सकता है. तो यहां ये सीधे-सीधे बदला लेने की प्रवृति है, न कि कोई मानसिक बीमारी.

क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक

दूसरों की थाली या पेय पदार्थ में थूकने या अखाद्य मिलाने की प्रवृति पर अब तक कोई स्टडी नहीं हुई. साइकोलॉजिस्ट खुद इसे कोई बीमारी मानने से इनकार करते हैं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक मार्क बरोज कहते हैं कि ये केवल एक आदत है, और लोग ऐसा जानते हुए करते हैं. हालांकि मेडिकल जर्नल पबमेड सेंट्रल के मुताबिक, इसके पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं. मसलन, किसी खास शख्स, खास विचारधारा, खास जेंडर या धर्म से नाराज व्यक्ति अपने टारगेट के खाने को गंदा करने में आनंद पाता है. ये इंटरमिटेंट एक्सप्लोजिव डिसऑर्डर भी हो सकता है, जिसमें थूक या पेशाब या सीमन मिलाकर मरीज को अपना गुस्सा कम होता लगे.

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