ऑस्ट्रेलिया के समंदर में मिला इसरो का सैटेलाइट मलबा, जानें कितना खतरनाक
नई दिल्ली
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने सोमवार को इस बात की पुष्टि की है कि 17 जुलाई को ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर मिली रहस्यमयी वस्तु उसके रॉकेट PSLV का ही मलबा है. चंद्रयान-3 की सफल लॉन्चिंग के तीन दिन बाद ही इस वस्तु के मिलने से आम लोगों और वैज्ञानिकों के बीच यह चर्चा का विषय बन गया था. शुरुआत में यह कहा गया था कि यह वस्तु चंद्रयान-3 से जुड़ी हो सकती है. हालांकि, इसरो ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था.
वहीं, ऑस्ट्रेलिया अंतरिक्ष एजेंसी (एएसए) ने सोमवार को कहा कि कुछ सप्ताह पहले पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के तटों पर मिली एक बड़ी वस्तु भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के रॉकेट का मलबा होने की पुष्टि की गई है. इसरो ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा है कि यह मलबा उसके ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) रॉकेटों में से एक हो सकता है. ज्ञात हो कि पीएसएलवी इसरो का सबसे भरोसेमंद रॉकेट है. इसरो PSLV की मदद से 58 प्रक्षेपण मिशन को अंजाम दे चुका है. हलांकि, यह पहली बार नहीं है कि सैटेलाइट का मलबा मिला है.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के एक अधिकारी ने कहा है, “ऑस्ट्रेलिया में मिली वस्तु संभवतः पीएसएलवी रॉकेट का एक अधजला हिस्सा है. दो महीने पहले इसकी मदद से आईआरएनएसएस समूह के लिए एक नेविगेशन उपग्रह लॉन्च किया गया था. इस उपग्रह को दक्षिण दिशा में प्रक्षेपित किया गया था. संभव है कि वायुमंडल में वापस आते वक्त रॉकेट का एक हिस्सा पूरी तरह नहीं जला हो और समुद्र में गिर गया हो. जो बाद में ऑस्ट्रेलियाई तट की ओर बह गया हो.”
ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा है कि उसने इसरो सैटेलाइट के इस मलबे को स्टोर कर लिया है. इस मलबे को लेकर आगे क्या कदम उठाया जा सकता है, इसको लेकर हम इसरो के साथ काम कर रहे हैं. साथ ही हम इसरो से संयुक्त राष्ट्र की अंतरिक्ष संधियों के तहत दायित्वों पर भी चर्चा करेंगे. वहीं, इसरो के अधिकारी ने कहा है कि एजेंसी (इसरो) ने आगे की कार्रवाई को लेकर अभी कोई निर्णय नहीं लिया है. इसरो के अधिकारी ने कहा कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि इस मलबे की पहचान करने के लिए इसरो की कोई टीम ऑस्ट्रेलिया का दौरा करेगी या नहीं.
कितना खतरनाक है यह मलबा?
अंतरिक्ष से गिरने वाले कबाड़ से जान-माल की हानि से इनकार नहीं किया जा सकता है. यहां तक कि महासागरों में भी इसका गिरना समुद्री जीवन के लिए खतरनाक और प्रदूषण का स्रोत हो सकती हैं. चूंकि, पृथ्वी की सतह का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा महासागर है. ऐसे में महासागरों में अंतरिक्ष कबाड़ के गिरने की संभावना अधिक रहती है. हालांकि, अभी तक इस तरह की कोई भी घटना दर्ज नहीं की गई है जिसमें पृथ्वी पर कबाड़ गिरने से जान-माल की क्षति पहुंची हो. जब भी इस तरह का कबाड़ पृथ्वी पर गिरा है, निर्जन क्षेत्र में गिरा है.
मई 2021 में भी 25 टन के चीनी रॉकेट का एक बड़ा हिस्सा हिंद महासागर में गिर गया था. इस तरह की घटनाओं में स्काईलैब अंतरिक्ष स्टेशन की घटना सबसे ज्यादा चर्चित है. यह घटना 1970 में हुई था. वर्तमान में यह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का पूर्ववर्ती स्टेशन है.
अगर इससे क्षति पहुँचती है तो क्या होगा?
अंतरिक्ष के मलबे को नियंत्रित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम बने हुए हैं. इस नियम में पृथ्वी पर गिरने वाले मलबे का भी जिक्र है. लगभग सभी देश जो अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपण करते हैं वो इस इस संधि के हस्तक्षरकर्ता हैं. अंतरिक्ष के मलबे से होने वाले नुकसान के लिए अंतरराष्ट्रीय दायित्व बने हुए हैं.
यह समझौता उन अंतरराष्ट्रीय समझौतों में से एक है जो बाह्य अंतरिक्ष समझौते के पूरक हैं. यह संधि अंतरिक्ष के मलबे से अन्य अंतरिक्ष परिसंपत्तियों को होने वाली क्षति संबंधित है, लेकिन यह पृथ्वी पर वस्तुओं के गिरने से होने वाली क्षति पर भी लागू होता है.
इस संधि के तहत कोई भी देश जो अंतरिक्ष में प्रक्षेपण कर रहा है अगर उसके मलबे से किसी भी तरह की क्षति होती है तो वह मुआवजा देने के लिए पूरी तरह से उत्तरदायी है. यानी जिस देश में भी अंतरिक्ष का मलबा गिरता है, वह देश उस वस्तु के गिरने से हुई नुकसान के लिए मूल देश से मुआवजे की मांग कर सकता है. मुआवजे की राशि अंतरराष्ट्रीय कानून, न्याय और समानता के सिद्धांतों के आधार पर तय की जाती है.
अगर वर्तमान मामले से इसे जोड़कर देखें तो यदि पीएसएलवी के मलबे से ऑस्ट्रेलिया को कोई नुकसान होता तो भारत मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी हो सकता था. चाहे भले ही वस्तु समुद्र में गिरी हो या फिर तटों पर बह कर गई हो.