अमरनाथ यात्रा: जितनी मुश्किल, उतनी रोचक… सफर 12,500 फीट की ऊंचाई तक का
पहलगाम
जय बाबा बर्फानी, भूखे को अन्न, प्यासे को पानी… 12 हजार 500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद अमरनाथ गुफा के दर्शन इस साल 29 जून को शुरू हुए जो 19 अगस्त तक होंगे. हर साल होने वाली अमरनाथ यात्रा को लेकर लोगों के मन में बेहद उत्सुकता रहती है. इसके साथ ही इसके बारे में जानकारी के लिए भी लोग बेहद रोमांचित रहते हैं. यात्रा कैसे होती है, वहां कैसे जा सकते हैं, वहां किस तरह के इंतजाम होते हैं, सफर कितना मुश्किल होता है, मौसम कैसा होता है… आदि-आदि. ऐसे कई सवाल लोगों के मन में होते हैं. वो अपने-अपने तरीके से जानकारी भी जुटाते हैं. मैंने इस बार अमरनाथ यात्रा की और पवित्र गुफा में बाबा बर्फानी के दर्शन भी किए. इस लेख के माध्यम से मैं अपने अनुभव सामने रखूंगा, साथ ही इस मुश्किल और दुर्लभ यात्रा को लेकर मन में आने वाले सवालों के जवाब भी देने की कोशिश रहेगी.
अमरनाथ गुफा जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम में आती है. गुफा तक का सफर बेहद मुश्किल है. हालांकि, इस सफर को सफल बनाने के लिए काफी प्रयास किए जाते हैं, वो सभी इंतजाम किए जाते हैं, जिससे हर किसी की ये यात्रा सफल हो. हर साल ये यात्रा गर्मी के महीनों में 45 से 50 दिन के आस-पास की होती है. हजारों और लाखों लोग इस यात्रा को करते हैं. यह यात्रा सरकार द्वारा श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड (SASB) के सहयोग से आयोजित की जाती है.
यात्रा से पहले शुरू हो जाते हैं रजिस्ट्रेशन
इस यात्रा के लिए सबसे पहले रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होती है, जो कि यात्रा से 2 से 2.5 महीने पहले शुरू हो जाते हैं. इस साल अप्रैल के महीने में रजिस्ट्रेशन शुरू हो गए थे. आप जितनी जल्दी रजिस्ट्रेशन करा लेंगे, आपकी यात्रा उतनी जल्दी शुरू हो जाएगी. लोगों का जोर रहता है कि उन्हें जल्द से जल्द दर्शन करने का मौका मिल जाए, क्योंकि बाद में बाबा बर्फानी पिघलने लगते हैं. इस बार भी शिवलिंग 6 जुलाई तक पिघल गया. हालांकि, हमें उससे पहले दर्शन करने का मौका मिल गया. बात रजिस्ट्रेशन की करें तो उससे पहले मेडिकल टेस्ट भी होता है. जब रजिस्ट्रेशन शुरू होता है, तभी जिले के सरकारी अस्पताल में जाकर आप अपना मेडिकल टेस्ट करा सकते हैं. अस्पताल में इसके लिए अलग से व्यवस्था भी की जाती है. इसके बाद आप ऑनलाइन या बैंक जाकर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं, वहां से आपको यात्रा की तारीख मिल जाएगी. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन jksasb.nic.in पर जाकर कराया जा सकता है. आप किस बैंक में जाकर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं, इसकी भी लिस्ट आती है.
यात्रा के 2 रूट हैं. एक है पहलगाम तो दूसरा है बालटाल. रजिस्ट्रेशन के समय आपको चुनना होता है कि आप किस रास्ते से गुफा तक का सफर तय करेंगे. पहलगाम से गुफा की दूरी 32 किलोमीटर है तो बालटाल से ये दूरी 14 किलोमीटर है. बालटाल से गुफा की दूरी कम है और ज्यादातर लोग इस रास्ते को चुनते भी हैं, लेकिन पहलगाम वाले रास्ते की तुलना में इसे और कठिन माना जाता है. हमने पहलगाम से अपनी यात्रा की, तो यहां विस्तार से उसी के बारे में बताया जाएगा. बालटाल वाले रास्ते को लेकर भी जानकारी दी जाएगी.
ठहरने से लेकर खाने तक की है उत्तम व्यवस्था
आपकी यात्रा पर्ची पर जो तारीख है, उससे 1-2 दिन पहले आप जम्मू पहुंच सकते हैं. जम्मू से आपकी यात्रा आगे बढ़ेगी. अगर आप ट्रेन से जम्मू पहुंचते हैं तो स्टेशन के पास लगे कैंप से ही आप RFID ले सकते हैं. पूरी यात्रा के दौरान आप इसे अपने गले में डाल कर रखें. RFID लेने के बाद आप जम्मू में भगवती नगर जाएंगे जो कि बेस कैंप है. यहां पहुंचने के बाद पूरा दिन आपको यहीं गुजारना होगा. यहां आपको कड़ी सुरक्षा चेकिंग से गुजरना होगा. यात्रियों के ठहरने की यहां उत्तम व्यवस्था है. यहां एसी और नॉन एसी दोनों हॉल हैं, जहां आप गद्दे-तकिया लेकर ठहर सकते हैं. शौचालय से लेकर नहाने तक की व्यवस्था यहां की गई है. हजारों यात्री यहां ठहरते हैं. यहीं पर यात्रियों के लिए खाने की व्यवस्था भी होती है. खाने पर आपको कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है. पूरी यात्रा के दौरान जहां-जहां कैंप हैं, वहां खाने के लंगर लगे हुए हैं, यानी खाने पर आपका कोई खर्च नहीं होना. हर जगह अलग-अलग लंगर में खाने की अलग-अलग वैरायटी होती हैं.
Amarnath Cave
हॉल में रुकने के पैसे भी बेहद कम होते हैं. इसके अलावा गद्दे और तकिया वापस कर उनके पैसे वापस भी ले सकते हैं. यहां से यात्रियों को बस में पहलगाम और बालटाल के लिए ले जाया जाता है. ये सफर अगली सुबह 3 बजे शुरू होता है. भगवती नगर कैंप से ही बस टिकट मिलेगी. एसी और नॉन एसी दोनों तरह की बसें उपलब्ध हैं. सभी यात्रियों को लेने के बाद सभी बस एक साथ काफिले में आगे बढ़ती हैं. जम्मू से पहलगाम तक का सफर 8 से 9 घंटे तक का होता है. इस सफर के दौरान बसें 2 जगह रुकती हैं, जहां यात्रियों के लिए लंगर की व्यवस्था होती है. जम्मू से बालटाल के लिए और भी ज्यादा समय लगता है.
चंदनवाड़ी से शुरू होती है असली यात्रा
पहलगाम पहुंचने पर यात्री बेस कैंप में ठहरते हैं. यहां से भी आगे का सफर अगले दिन शुरू होता है. यहां नुनवान यात्री कैंप में रुकने की व्यवस्था होती है. यहां लोग टेंट में ठहरते हैं. यहां भी कई लंगर लगे होते हैं, जो लगातार चलते रहते हैं. इसके साथ ही यहां लोगों को आस-पास के होटलों में भी ठहरने की अनुमति होती है. पहलगाम से अगला पड़ाव चंदनवाड़ी है, जो 16 किलोमीटर दूर है. यहां के लिए आपको सुबह-सुबह कैब मिलती हैं. चंदनवाड़ी से गुफा तक की दूरी 32 किलोमीटर है. यहां से आपको आगे का सफर पैदल या घोड़े/खच्चर या पालकी से करना होगा. पैदल यात्री चंदनवाड़ी से डंडा खरीद लेते हैं, जो कि सफर में काम आता है.
14000 फीट की ऊंचाई से नीचे आते हैं यात्री
चंदनवाड़ी से लेकर गुफा तक 3 से 4 जगहों पर कैंप बने हुए हैं, जहां यात्री रुक सकते हैं और रात्रि विश्राम कर सकते हैं. यहां लोगों के ठहरने के लिए टेंट बने हुए हैं और खाने के लिए लंगर लगे हुए हैं. चंदनवाड़ी के बाद पहला पड़ाव पिस्सू टॉप है जो कि 3 किलोमीटर दूर है. ये ऊंचाई पर है. इसके बाद शेषनाग और पंचतरणी में कैंप हैं.चंदनवाड़ी से शेषनाग 12 किलोमीटर तो पंचतरणी 26 किलोमीटर दूर है. ये सभी बेहद ऊंचाई पर स्थित हैं. शेषनाग और पंचतरणी के बीच गणेश टॉप है, जो कि यात्रा की सबसे ऊंचाई वाली जगह है. ये 14,000 फीट की ऊंचाई पर है. यहां से पंचतरणी के लिए नीचे की तरफ जाना पड़ता है. पंचतरणी 11,500 फीट की ऊंचाई पर है. पंचतरणी से पवित्र गुफा की दूरी 6 किलोमीटर है. यहां से फिर ऊंचाई का सफर शुरू होता है. गुफा 12,500 फीट की ऊंचाई पर है.
यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर भी है विकल्प
मैंने अपनी यात्रा घोड़े/खच्चर से की. चंदनवाड़ी से पंचतरणी तक सफर किया और फिर वहीं रात्रि विश्राम किया. घोड़े/खच्चर से सफर 7 से 8 घंटे में पूरा हुआ. इसके बाद गुफा के लिए अगले दिन सफर किया. पंचतरणी से गुफा तक के लिए यात्रा सुबह 4 बजे शुरू हो जाती है. ये सफर भी घोड़े से किया. अगर आप घोड़े/खच्चर से यात्रा करते हैं तो आपको आने-जाने दोनों तरफ के लिए 10 हजार के आस-पास खर्च करने होंगे. इसके अलावा हेलीकॉप्टर का भी विकल्प होता है. हेलीकॉप्टर की बुकिंग यात्रा से काफी पहले शुरू हो जाती है. बालटाल और पहलगाम दोनों रास्तों से हेलीकॉप्टर की सुविधा पंचतरणी तक के लिए है. पंचतरणी से गुफा तक का सफर पैदल, घोड़ा/खच्चर और पालकी से ही किया जाता है.
रास्ते से लेकर मौसम तक बनता है चुनौती
अगर रास्ते की बात करें तो ये बेहद ही मुश्किल होता है. ज्यादातर यात्रा में आपको चढ़ाई करनी होगी. पहाड़ियों पर बर्फ मिलेगी. रास्ते में आपको कई जगह कंकड़-पत्थर मिलेंगे तो कहीं कीचड़ मिलेगी वहीं कहीं किलोमीटर तक धूल का सामना करना होगा. कहीं बर्फ के बीच में से निकलना होगा तो कहीं बेहद सकरे रास्ते से गुजरना होगा. ज्यादातर रास्ते पर पैदल यात्री, घोड़े/खच्चर और पालकी वाले एक साथ चलते हैं. इससे भी मुश्किलें बढ़ती हैं. कहीं-कहीं चढ़ाई बेहद मुश्किल होती है. कई जगह पहाड़ी बेहद चकनी होती है. इसके अलावा आपको मौसम से भी लड़ना होगा. पहलगाम से ही तापमान में गिरावट देखी जा सकती है. ठंड का अनुभव आपको होने लगेगा, लेकिन कई बार तेज धूप आपको परेशान भी करेगी. सुबह और शाम काफी ठंडी रहेगी तो दोपहर में धूप परेशान कर सकती है. अगर बारिश हो जाती है तो सफर कई गुना मुश्किल हो जाता है. ज्यादा बारिश होने पर यात्रा को रोक भी दिया जाता है. रास्ते में भूस्खलन और हिमस्खलन का भी खतरा बना रहता है.
Amarnath Route
कठिनाई के साथ आनंद का भी अनुभव
इन मुश्किलों को देख कई बार आपको डर तो लगता है, लेकिन साथ ही साथ आप आनंद का भी अनुभव करते हैं. पहाड़ों पर आप सुंदर-सुंदर नजारे देखते हैं. पहाड़ बर्फ से ढके होते हैं. कई जगह पहाड़ों से झरना बह रहा होता है तो कहीं नदी गुजर रही होती है. आप प्रकृति की सुंदरता को सामने से महसूस कर पाते हैं. जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ती है या गुफा के करीब पहुंचती है, आप उतना ही अच्छा महसूस करने लगते हैं और मुश्किलें आपको कम लगने लगती हैं. कठिनाई से सफर कर रहे पैदल यात्रियों को जोश काफी हाई होता है. उनके चेहरे पर थकान तो दिखती है, लेकिन अंदर से वो उत्साह से भरे होते हैं.
सुरक्षा में तैनात हैं हजारों जवान
सुरक्षा की बात करें तो ये काफी सख्त होती है. जम्मू से लेकर गुफा तक बेहद पुख्ता सुरक्षा की व्यवस्था होती है. यात्रा के लिए हजारों केंद्रीय सशस्त्र बल और राज्य पुलिस कर्मियों को तैनात किया जाता है. सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एनडीआरएफ/एसडीआरएफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस और ट्रफिक पुलिस के जवान तैनात होते हैं. यात्रा में चढ़ाई ज्यादा होती है तो कई बार लोगों को परेशानी भी होती है. लोगों की तबीयत भी खराब होती है, इसलिए जगह-जगह पर मेडिकल कैंप भी लगे होते हैं.
लगभग 60 दिनों तक चलने वाली इस यात्रा के लिए महीनों पहले तैयारियां शुरू हो जाती हैं. कई महीनों तक यहां बर्फबारी होती है, जिससे पूरा रास्ता ब्लॉक हो जाता है. रास्ता तैयार किया जाता है. जगह-जगह कैंप लगाए जाते हैं. लंगरों की व्यवस्था की जाती है. पैदल यात्रियों को चंदनवाड़ी से गुफा तक पहुंचने में 3 दिन लग सकते हैं तो घोड़े/खच्चर से ये सफर डेढ़ दिन में पूरा हो सकता है. बालटाल से समय बचता है. हेलीकॉप्टर से 1 या 1.5 दिन में ही दर्शन कर वापस पहलगाम आया जा सकता है.