शराब घोटाला में यूपी STF की एंट्री : अनवर समेत कई आरोपियों को लेने आई योगी की पुलिस, नोएडा में दर्ज है FIR
रायपुर
छत्तीसगढ़ में बहुचर्चित शराब घोटाले की जांच जारी है और कारोबारी अनवर ढेबर, पूर्व रिटायर्ड आईएएस अनिल टुटेजा, एपी त्रिपाठी, अरविंद सिंह समेत 5 से 7 आरोपी जेल में बंद हैं। इस पूरी जांच में अब एक नया ट्विस्ट आया है। जहां घोटाले की जांच के बीच यूपी पुलिस की एंट्री हो गई है। नकली होलोग्राम बनाने को लेकर नोएडा में इन सभी पर FIR दर्ज है। जिसको लेकर लखनऊ STF की टीम गुरुवार को राजधानी रायपुर पहुंची। बताया जा रहा है कि, लखनऊ STF इन्हें अपने साथ लेकर जाएगी।
शराब घोटला का मास्टर माइंड कौन है और यह घोटाला कैसे हुआ। इसको लेकर ईडी शिकायत पर 68 लोगों के नाम पर एफआईआर दर्ज किया गया है. जिसमें उनकी क्या भूमिका है और शराब से कितनी कमाई हुई है। कितना हिस्सा किस अफसर और नेता को मिला है। इस पैसे को नेताओं और अफसरों ने कहां और कैसे निवेश किया। इन सभी प्रश्नों का जवाब एफआईआर में भी मौजूद हैं।
ईडी की सूचना के आधार पर ईओडब्ल्यू में दर्ज FIR में अनिल टुटेजा, अरुणपति त्रिपाठी और अनवर ढेबर को शराब घोटाला का मास्टर माइंड बताया गया है। FIR में शामिल बाकी आईएएस और अन्य सरकारी अफसर और लोग सहयोगी की भूमिका में थे। शराब घोटाला से होने वाली आमदनी का बड़ा हिस्सा इन्हीं तीनों को जाता था। टुटेजा आईएएस अफसर हैं, जब यह घोटाला हुआ तब वे वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के संयुक्त सचिव थे। दूरसंचार सेवा से प्रतिनियुक्ति पर आए त्रिपाठी आबकारी विभाग के विशेष सचिव और छत्तीसगढ़ मार्केटिंग कार्पोरेशन के एमडी थे। वहीं, ढेबर कारोबारी हैं। एफआईआर के अनुसार ढेबर और टुटेजा ने मिलकर पूरी प्लानिंग की थी।
FIR के अनुसार अनिल टुटेजा, अरुणपति त्रिपाठी और अनवर ढेबर ने शराब घोटाला से प्राप्त रकम को अपने परिवार वालों के नाम पर निवेश किया। टुटेजा ने अपने बेटे यश टुटेजा के नाम पर निवेश किया। त्रिपाठी ने अपनी पत्नी मंजूला त्रिपाठी के नाम पर फर्म बनाया जिसका नाम रतनप्रिया मीडिया प्रइवेट लिमिटेड था। अनवर ढेबर ने अपने बेटे और भतीजों के फर्म में पैसे का निवेश किया। FIR में छत्तीगसढ़ के पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड का भी नाम है। ढांड पर टुटेजा, त्रिपाठी और ढेबर के शराब सिंडीकेट को संरक्षण देने का आरोप है। इसके लिए ढांड को सिंडीकेट की तरफ से राशि भी दी जाती थी।
ईडी की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा 2020 में ढांड के यहां आयकर विभाग के सर्च के दौरान मिले दस्तावेजों से हुआ है। प्रदेश में बड़े स्तर पर हुए शराब घोटाला में तत्कालीन विभागीय मंत्री कवासी लखमा को हर महीने 50 लाख रुपये हिस्सा मिलता था। एफआईआर के अनुसार लखमा के साथ ही विभागीय सचिव आईएएस निरंजन दास को भी सिंडीकेट की तरफ से 50 लाख रुपये हर महीने दिया जा रहा था।