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छत्तीसगढ़ में बिजली संकट! कोरबा पश्चिम में 4 दिन का ही कोयला बचा, ऐसे हुआ खुलासा

पखवाड़े भर से कोरबा जिले में हो रही झमाझम बारिश का असर अब उद्योग धंधों पर भी पड़ने लगा है। दुनिया की दूसरी और चौथी कोयला खदान गेवरा और कुसमुंडा से उत्पादन आधा हो गया है। कोयला निकालने में दीपका खदान की सांसें फुल रही है। इसका असर बिजली घरों पर दिखने लगा है। प्रदेश के अधिकांश बिजली घरों में कोयले का संकट खड़ा हो गया है। सबसे खराब स्थिति छत्तीसगढ़ बिजली उत्पादन कंपनी के कोरबा पश्चिम संयंत्र की है। संयंत्र में तीन से चार दिन के लिए कोयला बचा है।

सीईए की रिपोर्ट में खुलासा

एनटीपीसी के साथ-साथ बालको संयंत्र में भी कोयले का स्टॉक संतोषजनक नहीं है। इसका खुलासा सीईए (सेंट्रल एनर्जी ऑथोरिटी) की ताजा रिपोर्ट में हुआ है। इसमें बताया गया है कि कोरबा जिले ( Korba Hasdev tap Electricity house ) में स्थित हसदेव ताप विद्युत गृह में वर्तमान में 88 हजार टन कोयला उपलब्ध है। जबकि संयंत्र को 85 फीसदी लोड के साथ चलाने के लिए रोजाना 19 हजार 900 टन कोयले की जरूरत पड़ती है। इसके अनुसार संयंत्र में मात्र चार दिन के लिए उपलब्ध है। इस संयंत्र से 1340 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाता है।

बालको और एनटीपीसी में भी स्टॉक कम

कोल स्टॉक के मामले में बालको और एनटीपीसी कोरबा संयंत्र की स्थिति भी ठीक नहीं है। ईंधन की उपलब्धता के मामले में 2600 मेगावाट क्षमता वाले एनटीपीसी के जमनीपाली स्टेशन में वर्तमान में दो लाख 44 हजार टन कोयला उपलब्ध है। संयंत्र को रोजाना 36 हजार टन कोयले की जरूरत पड़ती है। इसके अनुसार इस संयंत्र में छह दिन के लिए कोयला उपलब्ध है। बालको के 600 मेगावाट पावर प्लांट में 44.5 हजार टन कोयले का स्टॉक है, जो कंपनी की प्रतिदिन की जरूरत के अनुसार बेहद कम है। बालको को इस यूनिट को चलाने के लिए रोजाना नौ हजार टन कोयले की जरूरत होती है।

संयंत्र में 13-13 दिन का कोयला होना जरूरी

सेट्रल एनर्जी अथॉरिटी के अनुसार एनटीपीसी के जमनीपाली स्टेशन और छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल के कोरबा पश्चिम संयंत्र में न्यूनतम 13 दिन के लिए कोयले का स्टॉक होना जरूरी है। ताकि आपातकालीन स्थिति में भी संयंत्र को भी चलाया जा सके।

फिलहाल गेवरा, दीपका और कुसमुंडा से आपूर्ति

कोरबा जिले में स्थित छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी की इकाई कोरबा पश्चिम और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत गृह को एसईसीएल के कोरबा में स्थित खदान से कोयले की आपूर्ति होती है। पिछले 15 दिन से कोरबा जिले में रुक-रुककर झमाझम बारिश हो रही है। इससे उत्पादन संकट गहरा गया है। बारिश से पूर्व जहां गेवरा में रोजाना लगभग डेढ़ लाख टन कोयला खदान से बाहर निकल रहा था। वह अब घटकर 50 हजार टन के आसपास हो गया है। यही हाल कुसमुंडा और दीपका का भी है।

24 घंटे में अब 45 रैक की निकल रहे जगह 20 से 22 रैक

मानसून से पहले कोरबा जिले की खदानों से रोजाना रेल मार्ग के रास्ते औसतन 40 से 45 रैक (मालगाड़ी) कोयला प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों के बिजली घरों को भेजा जाता था। जब से बारिश शुरू हुई है तब से कोयला परिवहन लगातार गिर रहा है। बड़ी मुश्किल से 20 से 22 रैक ही कोयले की आपूर्ति बिजली घरों को हो रही है।

पश्चिम संयंत्र में आधा से भी कम उत्पादन

कोरबा पश्चिम संयंत्र से उत्पादन क्षमता 1340 मेगावाट है। लेकिन कोयले की कमी के कारण यहां स्थित इकाईयों से लगभग 550 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है।

दीपका में 957 मिमी बारिश

मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका और कुसमुंडा एक-दूसरे से लगी है। इस साल मानसून शुरू होने के बाद से अभी तक कोयला खदान क्षेत्र में लगभग 957 मिमी बारिश दर्ज की गई है। इसका सीधा असर खनन पर पड़ा है।

एसईसीएल, जनसंपर्क अधिकारी डॉ. सनीष चंद्र ने कहा कि कोरबा में लगातार बारिश हो रही है। इस कारण खनन में गिरावट आई है। संयंत्रों को कोयले की कमी नहीं हो, इसके लिए पूरी कोशिश की जा रही है।

कोरबा पश्चिम संयंत्र के पूर्व सीई संजय शर्मा ने कहा कि कोरबा पश्चिम संयंत्र में कोयला कम है। लगातार पानी गिरने से उत्पादन कम हो रहा है। तीन दिन पहले मैं सेवानिवृत्त हुआ हूं। एसईसीएल से कोयले की आपूर्ति करने का मांग किया था। कोयला गीला होने से इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है। इकाइयां पूरी क्षमता से नहीं चल पाती। यूनिट चोक होती है।

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