हैकिंग, चिप बम और मोसाद की तबाही वाली प्लानिंग… लेबनान पेजर अटैक पर उठ रहे 11 सवालों के पढ़ें जवाब
नई दिल्ली
इजरायल और हमास की जंग में बीच में कूदे लेबनान और उसके हिजबुल्लाह लड़ाकों पर मंगलवार को एक नए तरह का हमला हुआ. अचानक लेबनान और सीरिया के कई शहरों में हिजबुल्ला लड़ाकों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हजारों पेजर फट गए. जिसमें 11 लोगों की मौत हो गई और 4000 से अधिक लोग जख्मी हुए हैं.
इस हमले के पीछे इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ होने का शक लेबनान को है. हमले के इस नए तरीके को लेकर कई सवाल लोगों के मन में हैं. लोग जानना चाहते हैं कि कैसे संभव हुआ होगा ये. हैकिंग, चिप बम या और कौन सा तरीका है जिसका इस हमले में इस्तेमाल हुआ होगा. हम आपको बताते हैं बड़े 11 सवालों के जवाब.
- पेजर ब्लास्ट के पीछे किस तरह की तकनीक और साइंस है?
पेजर साधारण रेडियो डिवाइसेस होते हैं. जिनसे छोटे संदेश या सिग्नल हासिल किए जाते हैं. इनका इस्तेमाल खासतौर की रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए होता है. अगर किसी को ऐसे यंत्रों में विस्फोट करने है तो उसे रिमोट से ट्रिगर होने वाले एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल करना होगा. जिसे पहले से पेजर में छिपाया गया हो. लेकिन इसके लिए जरूर है कि पेजर लोगों तक पहुंचने से पहले कंपनी में ही टेंपर किए गए हों. या फिर पेजर के अंदर कोई हथियार छिपाया जाए. वो भी चुपके से.
इस तरह के अटैक फ्रिक्वेंसी जाम करके, हैकिंग या वायरलेस सिग्नल कंट्रोल के जरिए भी हो सकते हैं. इसके लिए रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटीफिकेशन (RFID) का इस्तेमाल किया जाता है. वायरलेस कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल्स को खराब किया जाता है. या फिर पेजर की तकनीक का ही सहारा लेकर उसमें रखे विस्फोटक को ट्रिगर किया जाता है. यह सबसे एडवांस इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर है.
- क्या इससे पहले पेजर ब्लास्ट कहीं किए गए हैं?
नहीं, ये दुनिया में अपनी तरह की पहली घटना है. लेकिन इजरायल इससे पहले भी कंपनियों के प्रोडक्शन लाइन को प्रभावित कर चुका है. सितंबर 2023 में ईरान को मिसाइल देने वाली कंपनी के मिसाइलों में Stuxnet का इस्तेमाल किया. ये सॉफ्टवेयर को प्रभावित करके विस्फोट कर देती है. यानी ईरान जो मिसाइलें बनाकर अपने सैन्य डिपो में रखता, ये वहीं फट जातीं. लेकिन ईरान ने यह हमला समय रहते संभाल लिया. मिसाइलों में विस्फोट नहीं हुआ. सेलफोन में आईईडी लगाकर विस्फोट तो पहले कई बार हो चुके हैं लेकिन इस तरह का हमला पहली बार हुआ है.
- हिजबुल्लाह के लड़ाके आपस में बात कैसे करते हैं, कम्यूनिकेशन सिस्टम क्या है?
हिजबुल्लाह के लड़ाके आपस में बातचीत करने के लिए पेजर का इस्तेमाल करते हैं. क्योंकि इनसे किसी पर नजर रखना आसान नहीं होता. हिजबुल्लाह के लड़ाके तीन तरह के पेजर का इस्तेमाल कर रहे थे. मोटोरोला LX2, Teletrim और गोल्ड अपोलो रग्ड पेजर AR924. तीनों का काम सिर्फ संदेश देना और रिसीव करना था. हजारों हिजबुल्लाह लड़ाकों के पास पेजर हैं. हिजबुल्लाह का मानना था कि पेजर स्मार्टफोन की तुलना में ट्रैक या हैक करना आसान नहीं होगा. इसिलए इसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा हो रहा था.
हिजबुल्लाह के कम्यूनिकेशन नेटवर्क में कई स्तर की संचार व्यवस्था है. इसमें सिविलियन नेटवर्क भी शामिल है. साथ ही पारंपरिक सूचना प्रणाली भी है. हिजबुल्लाह ने अपना फाइबर ऑप्टिक्स नेटवर्क डेवलप किया है. ताकि इसे इजरायल या कोई और देश इंटरसेप्ट न कर पाए.
- कब से हिजबुल्लाह कर रहा है पेजर्स का इस्तेमाल?
हिजबुल्लाह की खुफिया एजेंसी कई सारे काउंटरइंटेलिजेंस यंत्रों का इस्तेमाल करती है. इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस और इंटरसेप्ट टेक्नोलॉजी भी है उनके पास. साल 2011 से हिजबुल्लाह सेलफोन डेटा का एनालिसिस करने की क्षमता रखती हैं. 90 के दशक में ही हिजबुल्लाह के लड़ाके अनइनक्रिप्टेड डेटा डाउनलोड करना सीख गए थे.
कहा जाता है कि रूस और उसकी जासूसी एजेंसी एफएसबी और ईरान की मदद से हिजबुल्लाह ने काउंटरइंटेलिजेंस सिस्टम डेवलप किया है. 2008 में इन्होंने माउंट सेनिन के पास संगठन ने फाइबर नेटवर्क में इजरायली बग डिटेक्ट किया था.
हिजबुल्लाह पार्लियामेंट्री ब्लॉक के प्रमुख मोहम्मद राद अली अमर के घर पहुंचे. जहां उसका बेटा पेजर ब्लास्ट में मारा गया. (फोटोः रॉयटर्स)
पेजर पुरानी तकनीक है. यह ज्यादा सुरक्षित, लो-डेटा कम्यूनिकेशन के लिए जानी जाती है. पेजर का इस्तेमाल कब से हो रहा है, इसकी डिटेल कहीं नहीं है. लेकिन माना जाता है कि ये सारे सिस्टम हिजबुल्लाह ने 1980 से स्थापित किए थे.
- इजरायल कैसे घुसा हिजबुल्लाह के पेजर सिस्टम में?
इजरायल की जासूसी संस्था मोसाद के पास बेहद आधुनिक और जटिल इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर तकनीक है. वो किसी भी तरह का कम्यूनिकेशन सिग्नल इंटरसेप्ट कर सकते हैं. हैकिंग कर सकते हैं. मालवेयर इंप्लांट कर सकते हैं. वो हिजबुल्लाह के सारे पेजर्स पर कंट्रोल कर सकते हैं. इसमें ह्यूमन इंटेलिजेंस (HUMINT) ने बड़ा रोल प्ले किया है. साथ ही वो खुफिया सोर्सेन ने जिन्होंने हिजबुल्लाह के पेजर्स को विस्फोटक के साथ मॉडिफाई किया. इस तरह के कम्यूनिकेशन सिस्टम में घुसपैठ करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटरसेप्शन तकनीक और इंसानी खुफिया नेटवर्क की जरूरत होती है. जिसका मिश्रण इजरायल ने बखूबी किया.
- इजरायल इतना पुख्ता कैसे था कि ये पेजर्स हिजबुल्लाह लड़ाकों के पास जाएंगे?
इजरायल दो तरह से ये डिटेल हासिल कर सकता है. इंसानी खुफिया नेटवर्क यानी HUMINT या फिर कम्यूनिकेशन फ्लो के जरिए. इसके अलावा पेजर बनाने वाली कंपनी की सप्लाई चेन को फॉलो करके, कि ये ऑर्डर नंबर के इतने पेजर्स कहां जा रहे हैं. इसके अलावा इजरायल ने हिजबुल्लाह लड़ाकों का इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस किया. यूज पैटर्न देखा. रेडियो ट्रांसमिशन इंटरसेप्ट किया. ताकि यह पता चल सके कि किस बैच का पेजर कहां जा रहा है.
- हमले के लिए खास पेजर्स चुने गए थे या ऐसे ही फोड़ दिए गए? हिजबुल्लाह के लड़ाके तीन कंपनियों के पेजर का इस्तेमाल कर रहे थे. मोटोरोला LX2, Teletrim और गोल्ड अपोलो रग्ड पेजर AR924. इजरायली HUMINT ने इनकी ट्रैकिंग की होगी. संचार का बहाव देखा होगा. ये पता करने के लिए इनमें से कौन सा पेजर सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है. उनके इस्तेमाल का पैटर्न क्या है. रेडियो ट्रांसमिशन को इंटरसेप्ट किया होगा. इसके बाद पता किया होगा कि किस पेजर को टारगेट करना है.
- क्या इजरायल को ये पता था कि कौन सा हिजबुल्लाह लड़ाका पेजर यूज कर रहा है या फिर ये तकनीक के जरिए जासूसी थी?
इस तरह के ऑपरेशन में तकनीकी मदद और इंसानी खुफियागिरी दोनों की जरूरत पड़ती है. HUMINT के जरिए खास तरह के पेजर्स, उन्हें इस्तेमाल करने वाले लोगों का पता कर सकते हैं. लेकिन सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT) और इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के जरिए पेजर से होने वाले कम्यूनिकेशन को ट्रैक कर सकते हैं. ताकि पैटर्न पता चल सके. साथ ही पेजर्स का मूवमेंट भी.
- क्या हिजबुल्लाह मोबाइल फोन को लेकर डरा हुआ था?
हां… हिजबुल्लाह मोबाइल और स्मार्ट फोन्स के इस्तेमाल से बचता आया है. क्योंकि इनके जरिए हिजबुल्लाह के लड़ाकों की ट्रैकिंग आसान हो जाती है. इससे उनकी लोकेशन का पता चल जाता है. मोबाइल फोन के जीपीएस या सेल टॉवर सिग्नल के जरिए मोबाइल फोन रखने वाली की सटीक लोकेशन मिल जाती है. इसलिए हिजबुल्लाह ने मोबाइल के जरिए पुरानी तकनीक पर आधारित पेजर को रखना बेहतर समझा.
पेजर में एनक्रिप्टेड रेडियो संदेश आते-जाते हैं. किसी भी तरह के खुफिया संदेश को आसानी से भेजा जा सकता है. जिसे ट्रैक करना मुश्किल है. मोबाइल फोन की तुलना में पेजर्स को हैक करना या उसे ट्रैक करना आसान नहीं होता. मोबाइल फोन को विस्फोट किए जा सकते हैं. इसलिए हिजबुल्लाह पेजर का इस्तेमाल कर रहा था.
- क्या वर्तमान तकनीक के साथ ऐसा हमला संभव है?
हां. तकनीकी तौर पर पेजर में विस्फोट करना संभव है. या किसी भी तरह के यंत्र जिसमें किसी भी तरह का विस्फोटक हिस्सा लगा हो. इन्हें रिमोट से संचालित करना आसान है. मोबाइल का इस्तेमाल बरसों से IED के तौर पर हो रहा है. पेजर जैसे यंत्रों को फोड़ने के लिए बहुत ही जटिल और सेंसिटिव प्लानिंग की जरूरत होती है. साथ ही एकदम सटीक नॉलेज होना चाहिए कि कहां है पेजर. कितना नुकसान करेगा. किस कम्यूनिकेशन नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहा है.
- क्या किसी जासूसी संस्था द्वारा मोबाइल से इस तरह का हमला किया गया है?
आतंकियों ने कई बार मोबाइल का इस्तेमाल इस तरह के हमले में किया है लेकिन किसी जासूसी संस्था या सिक्योरिटी एजेंसी द्वारा ऐसा करने की खबर दुर्लभ है. या अत्यधिक खुफिया है. मोसाद ने टारगेटेड हमले किए हैं. ऐसे हमले जिसमें इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का इस्तेमाल हुआ है. इसमें 2008 में हिजबुल्लाह के मिलिट्री कमांडर इमद मुगनियेह है. जिसकी कार दमिश्क में उड़ा दी गई थी.