श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास, धरती पर भ्रमण करती हैं मां लक्ष्मी, जानें शरद पूर्णिमा का महत्व
नई दिल्ली
आज शरद पूर्णिमा है. आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं. इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. और उसकी किरणों में अमृत का संचार होता है. ऐसी मान्यता है कि इस रात को चंद्रमा की किरणों में स्वास्थ्यवर्धक और औषधीय गुण होते हैं, जो शरीर के लिए लाभकारी होते हैं. इसलिए लोग शरद पूर्णिमा की रात छत या आंगन में खीर रखते हैं, ताकि चंद्रमा की किरणों के औषधीय और दिव्य गुण उसमें आ जाएं. फिर अगले दिन सुबह इसका सेवन करते हैं.
शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी और भगवान श्रीकृष्ण को लेकर भी एक खास मान्यता है. ऐसा कहते हैं कि इस दिन मां लक्ष्मी धरत पर भ्रमण कर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. भगवान श्रीकष्ण का महारास भी शरद पूर्णिमा की तिथि का ही बताया जाता है.
जब श्रीकृष्ण ने रचाया महारास
शरद पूर्णिमा की तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला से भी जोड़ा जाता है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा अपनी सबसे पूर्ण और उज्ज्वल अवस्था में होता है. और इसकी चांदनी विशेष रूप से पवित्र और अमृतमय हो जाती है. श्रीकृष्ण ने इसी दिन वृंदावन के गोपियों के साथ महारास का आयोजन किया था. जिसे ‘रास लीला’ के नाम से भी जाना जाता है.
श्रीकृष्ण और गोपियों का यह दिव्य रास एक प्रेममयी, आध्यात्मिक और अलौकिक घटना थी, जिसे भक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है. इस रासलीला में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया शक्ति से गोपियों के साथ नृत्य किया, जिससे गोपियों को यह अनुभव हुआ कि श्रीकृष्ण केवल उन्हीं के साथ नृत्य कर रहे हैं.
धरती पर आती हैं मां लक्ष्मी
शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी से जुड़ी भी एक प्रचलित मान्यता है. शरद पूर्णिमा को देवी लक्ष्मी का दिन कहा जाता है. कहते हैं कि इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों को धनधान्य की प्राप्ति का वरदान देती हैं. व्यापारी वर्ग इस दिन को लक्ष्मी की कृपा पाने का सबसे अच्छा अवसर मानते हैं.
16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है. शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है. इसलिए इसकी रोशनी में खीर रखकर खाना शुभ होता है. इसकी दिव्य रात कुछ विशेष उपाय बड़े ही मंगलकारी माने जाते हैं.