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खालिस्तान समर्थकों ने जयशंकर को घेरा: भारत-PAK से ब्रिटेन कैसे पहुंचा आंदोलन, कैसे मिली शह, किसने दिया बढ़ावा?

नई दिल्ली

ब्रिटेन में गुरुवार को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के काफिले पर खालिस्तान समर्थकों ने हमले की कोशिश की। दरअसल, जयशंकर लंदन के चैथम हाउस में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। बाहर खालिस्तान समर्थक बड़ी संख्या में जुट गए। जब जयशंकर बाहर निकले, उस दौरान उपद्रवियों ने उनके काफिले के सामने प्रदर्शन किया। इसी मौके पर प्रदर्शनकारियों के समूह में से एक व्यक्ति सुरक्षा घेरा तोड़ता हुआ जयशंकर की कार के पास पहुंच गया और उन्हें घेरने की कोशिश करने लगा। इतना ही नहीं खालिस्तान समर्थकों ने उनकी कार को भी रोकने की कोशिश की।

इस पूरी घटना को लेकर ब्रिटेन में भी आवाजें उठी हैं। कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमैन ने ब्रिटिश संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में इस मुद्दे को उठाया और घटना को खालिस्तानी गुंडों की ओर से किया हमला करार दिया। दूसरी तरफ भारत की तरफ से भी ब्रिटेन में खालिस्तानी चरमपंथ के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जाहिर की गई।

इस पूरे घटनाक्रम के बाद यह जानना अहम है कि आखिर ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों की जड़ें कितनी गहरी हैं? भारत और पाकिस्तान के क्षेत्र में फैला यह अलगाववादी एजेंडा ब्रिटेन तक पहुंचा कैसे? इसे वहां जोर-शोर से उठाने वाले शख्स और संगठन का क्या इतिहास है? इसके अलावा बीते दिनों में ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों की किन हरकतों को लेकर भारत में चिंता बढ़ी है? आइये जानते हैं…

पहले जानें- ब्रिटेन में क्या है सिख समुदाय की आबादी
ब्रिटेन के 2021 तक की जनगणना के मुताबिक, वहां अभी करीब 5.25 लाख सिख बसे हैं। इस लिहाज से ब्रिटेन की जनसंख्या में सिखों का आंकड़ा करीब 1 फीसदी है। यानी ब्रिटेन में सिख चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह हैं।

ब्रिटेन में सिखों की मौजूदगी 19वीं सदी के मध्य से है, हालांकि तब इस धर्म के लोगों की आबादी दूसरे धर्मों के मुकाबले काफी कम थी। यह स्थिति दूसरे विश्व युद्ध के बाद से बदलना शुरू हुई, जब ब्रिटेन में कामगारों की कमी की वजह से बड़ी संख्या में सिख समुदाय को भारत से ब्रिटेन में बसने का मौका दिया गया। इतना ही नहीं 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे का दंश झेलने वाले कई सिख परिवारों ने ब्रिटेन को अपना नया घर बनाने का फैसला किया।

मौजूदा समय में ब्रिटेन में सिख आबादी ब्रिटेन के बर्मिंघम और ग्रेटर लंदन जैसे क्षेत्रों में बसी है। इन्हीं शहरों में छोटे-छोटे स्तर पर खालिस्तान समर्थकों के धड़े मौजूद हैं, जिनकी तरफ से समय-समय पर आवाज उठाई जाती रही है।

खालिस्तान मुद्दे पर कट्टरपंथ ब्रिटेन तक पहुंचा कैसे?
विभाजन के दंश के बाद भारत और पाकिस्तान में पहुंचे कुछ सिखों ने अपने लिए अलग देश की मांग की। खासकर पाकिस्तान में इस्लामिक शासन के बीच देश छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले सिखों ने इसकी मांग जोर-शोर से उठाई। अविभाजित भारत में यह मांग छोटे स्तर पर 1930-40 के दौर में उठी। हालांकि, बाद में लंबे समय तक माहौल शांतिपूर्ण रहा।

1960 के दौर में पंजाब में एक बार फिर अलग खालिस्तान की मांग उठी। दरअसल, इस दौर में खालिस्तान के लिए सबसे बड़ी आवाज माने जाने वाले एक नेता जगजीत सिंह चौहान का उदय हुआ। डेंटिस्ट से नेता बने जगजीत चौहान ने पहले एक अलग स्वायत्त सिख राज्य बनाने की मांग रखी। उनकी इन मांगों का पंजाब में कई कट्टरंपथी समूहों ने समर्थन भी किया। हालांकि, उनका यह अभियान भारत में तेजी से बढ़ने में असफल रहा।
कौन थे जगजीत सिंह चौहान, जो अलग खालिस्तान की मांग को विदेश पहुंचाया?

पाकिस्तान से संपर्क में आए जगजीत और बदल गया शांतिपूर्ण मांग का रुख
बताया जाता है कि विदेश जाने के बाद जगजीत सिंह चौहान ने प्रवासी सिखों को अपने अलग देश- खालिस्तान का विचार दिया। यही वह मौका था, जब पाकिस्तान को जगजीत के एजेंडे का पता चला। भारत में अशांति फैलाने के लिए पाकिस्तान ने जगजीत सिंह से संपर्क साधा। 1971 में जगजीत को ब्रिटेन का पासपोर्ट मिला और वे पाकिस्तान जा पहुंचे। यहां उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य तानाशाह और राष्ट्रपति (1969-1971 तक) याह्या खान से मुलाकात की।

बताया जाता है कि याह्या खान ने जगजीत सिंह से वादा किया था कि वह भारत से अलग एक स्वतंत्र खालिस्तान के निर्माण में उनकी मदद करेंगे। यह पूरा घटनाक्रम उस दौरान हुआ, जब पूर्वी पाकिस्तान को लेकर भारत और पश्चिमी पाकिस्तान में जंग के आसार तेज थे। मौजूदा समय के बांग्लादेश में तब आजादी की लड़ाई जोर-शोर से जारी थी। हालांकि, पाकिस्तान इस मुद्दे को बढ़ावा देकर भारत की भू-राजनीति में बड़ी हलचल को बढ़ावा देना चाहता था।
गौरतलब है कि 1960-70 का दशक वह समय था, जब पाकिस्तान और अमेरिका काफी करीब रहे थे। इसकी वजह थी मध्य एशिया में पाकिस्तान की वह भौगोलिक मौजूदगी, जो उसे पश्चिम और चीन के बीच एक पुल बनाती थी। पाकिस्तान ने अपनी इस स्थिति का फायदा जगजीत सिंह चौहान को भी पहुंचाया और पर्दे के पीछे से अमेरिका में भी उसके अभियान के लिए समर्थन जुटाया।

जगजीत सिंह इसके बाद लंदन वापस लौटे। यहां उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें भारत में रह रहे सिखों को भड़काने की कोशिश की गई। इसके बाद जगजीत न्यूयॉर्क पहुंचे और न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार में खालिस्तानी शासन की स्थापना का एक पूरे पन्ने का ओपिनियन एडवर्टाइजमेंट (ऑप-एड) दे डाला। माना जाता है कि इसके लिए उन्हें अमेरिकी सरकार का भी समर्थन हासिल था।
अगले कुछ दशकों में जगजीत सिंह चौहान अलग खालिस्तान के लिए भारत और ब्रिटेन में समर्थन जुटाने की कोशिश करते रहे। उन्होंने अपने अभियान के लिए फंडिंग जुटानान भी जारी रखा। 1980 में जगजीत ने खालिस्तान परिषद की शुरुआत की, जिसने 1984 से लेकर 1990 के मध्य तक लंदन में खालिस्तान हाउस से निर्वासित सरकार चलाना जारी रखा।

1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार और भिंडरावाले की मौत बना हथियार
1980 की शुरुआत तक खालिस्तान के लिए आवाज उठाने वालों में जगजीत सिंह चौहान प्रमुख आवाज था। हालांकि, 1984 में जब भारत में ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाले को मार गिराया गया और सेना के इस अभियान में स्वर्ण मंदिर को नुकसान पहुंचा तो दुनियाभर में रहने वाले सिख समुदाय में रोष बढ़ गया। सिख समुदाय के इस आक्रोश का जगजीत सिंह ने फायदा उठाया और कट्टरपंथी सिखों को एकजुट करने की कोशिश की।

इसका नतीजा यह हुआ कि ब्रिटेन में भारत के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए। एक व्यक्ति ने भारतीय उच्चायोग में घुसकर तबाही मचाई और इसमें आग लगाने की कोशिश की। विदेश और खासकर ब्रिटेन में रहने वाले सिखों का गुस्सा कितना ज्यादा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगले कुछ वर्षों तक सिख प्रवासियों के एक धड़े ने पंजाब में चल रहे खालिस्तान आंदोलन को समर्थन दे दिया। इसके चलते भारत में कई खालिस्तानी चरमपंथी संगठन भी खड़े हुए। चरमपंथी वर्ग ने साथ ही साथ खालिस्तान के नाम पर अपराध कर भागने वालों को भी पनाह देना शुरू कर दिया और लड़ाई के लिए धन जुटाना जारी रखा। यही वह समय था जब ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में बड़ी संख्या में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का पहुंचना शुरू हुआ।
ब्रिटेन में अब क्या हैं खालिस्तान समर्थक अभियानों की स्थिति?
1990 का दौर भारत और खासकर पंजाब के लिए काफी संवेदनशील रहा। हालांकि, केपीएस गिल के नेतृत्व में पंजाब में शांति स्थापित करने में सफलता हासिल की गई। इसके बावजूद कुछ छोटे इलाकों में खालिस्तान समर्थन की आवाजें उठती रही हैं।

वहीं, भारत ने घर की स्थिति ठीक करने के बाद विदेश में खालिस्तान समर्थन से जुड़े अभियानों पर नियंत्रण की कोशिश शुरू की। ब्रिटिश अखबार द डेलीमेल के मुताबिक, 2015 में भारत ने ब्रिटेन को एक डोजियर सौंपा था, जिसमें कहा गया था कि सिख युवाओं को ब्रिटेन के गुरुद्वारों में कट्टरपंथी बनाने की कोशिश की जा रही है। इसमें कहा गया था कि विचारधारा बदलने के साथ युवाओं को साधारण केमिकल्स से विस्फोटक बनाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।

ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों के बढ़ रहे उग्र प्रदर्शन
हालिया दिनों में ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों के उग्र प्रदर्शनों में बढ़ोतरी देखी गई है। खासकर चरमपंथी संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) की अलग खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह से जुड़ी मांग के बाद। ब्रिटेन में इस रेफ्रेंडम को कराने की कई कोशिशें की गईं। हालांकि, वोटिंग के फर्जी दावों और प्रोपगैंडा के बीच इनमें 50 हजार लोगों के पहुंचने का दावा किया जाता है।

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