धर्म

पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म कर अपने पितरों को करे प्रसन्न- डॉ अनिल तिवारी, छत्तीसगढ़

डॉ अनिल तिवारी, छत्तीसगढ़

मृत्यु के समय जो भी हमारा भौतिक शरीर समाप्त हो जाता है , इसका विखण्डन हो जाता है । ऐसा होते हैं इच्छा शरीर स्वतः ही सक्रिय हो जाता है और अपनी गति से कार्य करने लग जाता है । इस इच्छा शरीर की भी एक सीमा है , एक निश्चित जीवन है । इसके बाद इस इच्छा शरीर का भी विखंडन हो जाता है और इससे भी सूक्ष्म शरीर क्रियाशील हो जाता है ।
इस प्रकार जो लौकिक मृत्यु होती है , वह तो केवल शरीर के बाहरी आकार की होती है । उसके मूल आत्मा की मृत्यु नहीं होती है । आत्मा इससे सूक्ष्म शरीर में जाकर क्रियाशील हो जाती है । सूक्ष्म शरीर भौतिक शरीर का ही सूक्ष्म रूप है अतः उसमें भी इच्छाएं , आकांक्षाएं , भावनाएं बराबर जीवित रहती हैं । सूक्ष्म शरीर इन इच्छाओं , आकांक्षाओं की पूर्ति में निरंतर प्रयासरत व व्यग्र रहता है । किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद जब तक नया शरीर नहीं मिलता है तब तक वह हमारे क्रियाकलापों को देखते रहते हैं । यदि हम उनके सम्मान में श्राद्ध करते हैं तो उनके मन में खुशी होती हैं । अतः उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए ।

कोई भी व्यक्ति स्वयं बहुत ही सरल तरीके से पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करके अपने पितरों को प्रसन्न कर सकता है ।

इसका विधान जटिल नहीं है । श्राद्ध पक्ष में 16 दिन होते हैं , इस वर्ष पूर्णिमा श्राद्ध 20 सितम्बर 2021 से प्रारम्भ हो रही है ,जिस दिन अर्थात जिस तिथि को पिता , दादा , अथवा परदादा देह त्यागते हैं , श्राद्ध पक्ष की इस तिथि को उनका श्राद्ध संपन्न किया जाता है । माता अथवा दादी अर्थात मातृपक्ष का श्राद्ध नवमी के दिन संपन्न किया जाता है , उसी दिन को मातृ नवमी कहा जाता है । यदि किसिको अपने पिता , दादा का श्राद्ध की तिथि याद नहीं है तो अमावस्या को श्राद्ध करना चाहिए । आगे श्राद्ध का विवरण दिया जा रहा है । इस विधि के अनुसार श्राद्ध संपन्न करें । श्राद्ध सम्पन्न करने का श्रेष्ठ समय – 12:00 बजे के बाद अभिजीत मुहूर्त से लेकर सूर्यास्त से पूर्व तक करना चाहिए ।

दक्षिण कि और मुख करके साधन करने बैठें । सबसे पहले पवित्रीकरण , आचमनी , आसन पूजन , गणेश ध्यान , गुरु ध्यान करने के बाद साधना प्रारम्भ करें ।
दोनों हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से प्रार्थना करें ।
॥ ॐ नमो नमस्ते गोविन्द पुराणपुरूषोत्तम् इदं श्राद्धं हृषीकेश रक्षतां सर्वतो दिशि ॥
संकल्प –
ॐ अद्य मम समस्त पितृणाम असद् गतीनां सद् गति प्राप्तिपूर्वकम क्षयतृप्तिहेतवे श्री विष्णुलोकप्तये पिण्डदानमात्र श्राद्धं महं करिष्ये ।
दक्षिण की ओर मुंह करके बाएं घुटने को मोड़कर बैठे और अपने यज्ञोपवीत्र को दायी ओर से बाये ओर परिवर्तन करके बैठे , उसके बाद तीन बार गायत्री मंत्र का जप करें फिर तीन बार ॥ ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च ॥ इस मंत्र का जप करें । इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर पितरों का आवाहन करें ।
॥ आहोदेवो पितृ संदात् आवाहयामि आवाहिता पितरेश्वरः पूजिताश्च प्रसन्नोभव सर्वदा ॥
इसके बाद दोनों में जल , तिल और गंध तथा पुष्प मिलाकर निम्न वाक्य बोलें । –
ॐ कव्यद् तृप्यताममिदं तिलोदकं तस्मै स्वधा ।
ॐ यमस्तृप्यताममिदं तिलोदकं तस्मै स्वधा ।
ॐ अर्यमा तृप्यताममिदं तिलोदकं तस्मै स्वधा ।
ॐ सोमपास्तृप्यताममिदं तिलोदकं तेभ्यः स्वधा ।
ॐ बर्हिषदस्तृप्यताममिदं तिलोदकं तेभ्यः स्वधा ।
फिर चार थालियों में भोजन सजा कर रखें । एक गुरु के लिए , एक विष्णु के लिए , एक अपने पितरों के लिए और एक चौथी थाली में गौ ग्रास , स्वांन ग्रास , काक ग्रास के लिए चौथे पर चौकी पर स्थापित करें तथा निम्न मंत्र का उच्चारण करें –
ॐ नाभ्याऽआसीदन्तरिक्ष ( गूं ) शीर्ष्णौ द्यौः समवर्तत । पद् भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रांस्तथालोकां अकल्पयन् ।ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविः ब्रह्मग् नौ ब्रह्मणा हुतम् ॥ ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ॥
पाँच आचमनी जल इन मंत्रों को बोलते हुए छोड़ें –
ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा । ॐ उदानाय स्वाहा । ॐ समानाया स्वाहा ।

निम्न मंत्र का तीन बार उच्चारण करें –
॥ ॐ तत्र पितरो मादयध्वं यथा भागमावृषायध्वम् ॥
एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दें तथा कर बद्ध पितरों से प्रार्थना करें ।
ॐ नमो वः पीतरो रसाय , नमो वः पितरः शोषायः , नमो वः पितरः जीवाय , नमो वः पितरः स्वधायै , नमो वः पितरः घोराय , नमो वः पितरः मन्यवे , नमो वः पितरः पितरो , नमो वो गृहान्नः पितरो दत्तसतो वः पितरो द्वेष्म ।
इस प्रकार प्रार्थना के बाद प्रणाम अर्पित करें। गुरु प्रसाद की थाली को सभी ग्रहण करें । पितरों के प्रसाद को केवल घर वाले लोग ही ग्रहण करें । उसके बाद गौ ग्रास , श्वान ग्र्रस , काक ग्रास को बाहर रख दें या उनको खिला दें । इस तरह सभी पितरों का श्राद्ध स्वयं करें , जिससे आपके इस पवित्र कार्य से पितृ वर्ग अनुकूल हो सके।

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