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गांवों में फिर से लगेगी कचहरी? हाई कोर्ट से रिपोर्ट तलब, ग्राम न्यायालय एक्ट लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भेजा नोटिस

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को राज्यों को ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अनुसार ग्राम न्यायालय स्थापित करने के लिए निर्देश देने की मांग के साथ दायर की गयी याचिका पर विचार करते हुए सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को नोटिस जारी किया है।

जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की खंडपीठ ने इस मामले में हाईकोर्टो को प्रतिवादी के रूप में जोड़ा, यह देखते हुए कि मामले के निर्णय के लिए उनकी उपस्थिति आवश्यक है। नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस द्वारा इस मामले में जनहित याचिका दायर की गयी थी जिसमें ग्राम न्यायालय अधिनियम को लागू करने की मांग को रखा गया था । याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि यह अधिनियम लगभग 14 साल पहले पारित किया गया है जबकि कई राज्यों ने एक भी ग्राम न्यायालय की स्थापना नहीं की है। प्रशांत भूषण ने कहा कि कि अधिनियम में ग्रामीण अदालतों की स्थापना की परिकल्पना की गई है। जो नि छोटे मामलों का फैसला करने के लिए सीपीसी और सीआरपीसी की कठोर प्रक्रिया से बाध्य नहीं होगी।

प्रशांत भूषण ने रखे तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क रखते हुए कहा कि देश की 50% से अधिक आबादी वकीलों का खर्च वहन नहीं कर सकती और नियमित अदालतों से संपर्क नहीं कर सकती है। यही कारण है कि छोटे मामलों के तेजी से फैसले के लिए ग्रामीण स्तर पर अदालतों के लिए यह अधिनियम बनाया गया। न्याय तक पहुंच मौलिक अधिकार है इसलिए इसे लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल जैसे बहुत कम राज्यों ने अधिनियम को लागू किया है। पीठ ने जब प्रशांत भूषण ने से पूछा कि क्या कोई राज्य ग्राम न्यायालयों की स्थापना का विरोध करता है। भूषण ने जवाब दिया कि हाईकोर्ट की सिफारिश के बावजूद हिमाचल प्रदेश सरकार विरोध कर रही है। उन्होंने कहा कि बिहार और झारखंड जैसे राज्य भी इसका विरोध कर रहे हैं। तमिलनाडु ने अभी तक एक भी ग्राम न्यायालय स्थापित नहीं किया।

झारखंड सरकार ने रखा अपना पक्ष
झारखंड के एडिशनल एडवोकेट जनरल सीनियर एडवोकेट तपेश कुमार सिंह ने प्रस्तुत किया कि अधिनियम अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित कानूनों के साथ संघर्ष पैदा करता है इसलिए राज्य सरकार इसे लागू नहीं कर रही है। उन्होंने बताया कि अधिनियम ने अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में उत्तर पूर्वी राज्यों को छूट दी है। उन्होंने आगे कहा कि हाईकोर्ट मामलों में आवश्यक पक्षकार हैं क्योंकि नियमों और नियुक्तियों का निर्धारण हाईकोर्टो के परामर्श से राज्यों द्वारा किया जाना है। पीठ ने तब मामले में पक्षकारों के रूप में हाईकोर्टो को जोड़ने का फैसला किया। पीठ ने यह भी कहा कि वह यूपी जैसे राज्यों को निर्देश देगी जिन्होंने ग्राम अदालतें स्थापित की हैं, वे अपने अनुभवों को साझा करते हुए हलफनामा दाखिल करें।

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