सोने की तलाश में खुदाई कर रहे थे, मिला बेशकीमती ‘खजाना’, पढ़ें गुजरात के कच्छ में ऐसा क्या लगा हाथ
कच्छ
गुजरात के कच्छ में एक प्राचीन सभ्यता मिली है। यहां पर कुछ लोग सोने की तलाश में खुदाई कर रहे थे, उन्हें सोने की जगह एक पुरानी बस्ती मिली। पुरातत्वविदों की मानें तो यह बस्ती हड़प्पा युग की है। फिलहाल पुरातत्वविदों ने इस जगह पर विस्तार से काम करने की मांग की है।
वह सोना ढूंढने के लिए खुदाई कर रहे थे लेकिन सोना मिलने की जगह उन्हें एक सभ्यता मिली। किंवदंती है कि कच्छ में धोलावीरा के विश्व धरोहर स्थल से 51 किलोमीटर दूर एक बस्ती लोदरानी दबे हुए सोने पर बैठी थी। दंतकथाओं को सही मानते हुए कुछ उद्यमी निवासी लगभग पांच साल पहले एक साथ यहां आए और अमीर बनने का सपना देखते हुए खुदाई शुरू कर दी।
हड़प्पा युग की गढ़वाली बस्ती
सोने की तलाश में हुई खुदाई में उन्हें कुछ नजर आया। यह ऐतिहासिक और कुछ बस्ती जैसा था। पुरातत्वविदों को सूचना मिली और फिर यहां विशेषज्ञों ने खुदाई शुरू की। अब पता चला कि वह हड़प्पा युग की गढ़वाली बस्ती है।
कैसी है वास्तुकला?
ऑक्सफोर्ड के स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के प्रोफेसर डेमियन रॉबिन्सन के साथ काम करने वाले एक शोध विद्वान अजय यादव इस खोज में प्रमुख पुरातत्वविद् हैं। उन्होंने कहा कि नए स्थल पर वास्तुकला का विवरण धोलावीरा से काफी मिलता-जुलता है।
ग्रामीण मानते हैं, यहां दफन है खजाना
अजय यादव ने कहा कि इस स्थल को पहले एक बड़ी पत्थर-पराली बस्ती के रूप में खारिज कर दिया गया था। ग्रामीणों का मानना था कि वहां एक मध्ययुगीन किला और खजाना दफन है। लेकिन जब हमने उस स्थान की जांच की, तो हमें एक हड़प्पा बस्ती मिली। यहां लगभग 4,500 साल पहले जीवन पनप रहा था।
मोरोधारो रखा गया नाम
जनवरी में औपचारिक रूप से पहचाने गए इस स्थल का नाम मोरोधारो रखा गया है। अजय यादव के अनुसार, इससे बड़ी मात्रा में हड़प्पा के मिट्टी के बर्तन मिले, जो धोलावीरा में पाए गए थे। यह बस्ती परिपक्व (2,600-1,900 ईसा पूर्व) से लेकर देर से (1,900-1,300 ईसा पूर्व) हड़प्पा तक दिखती है। पुरातत्वविदों ने कहा कि विस्तृत जांच और खुदाई से और अधिक खुलासा होगा।
रेगिस्तान में कभी था जीवन
अजय यादव ने कहा कि हमारा सबसे महत्वपूर्ण अवलोकन यह है कि यह स्थल और धोलावीरा दोनों समुद्र पर निर्भर थे। चूंकि यह रण (रेगिस्तान) के इतने करीब है, इसलिए यह सुरक्षित रूप से माना जा सकता है कि उस समय जो बाद में रेगिस्तान बन गया वह नौगम्य रहा होगा।
60 के दशक में उठी थी बात लेकिन..
लोद्रानी का पुरातात्विक प्रसिद्धि का दावा पहले झूठी शुरुआत के बाद आया है। पुरातत्वविद् जे पी जोशी ने 1967-68 में एक सर्वेक्षण किया था। उन्होंने लोदरानी में हड़प्पा स्थल की सूचना दी लेकिन तब कोई ठोस सबूत नहीं मिला। 1989 और 2005 के बीच धोलावीरा खुदाई के दौरान, विशेषज्ञों ने लोदरानी का दौरा किया लेकिन वे प्रभावित नहीं हुए। यदि एक छोटी सी बस्ती के निवासियों ने खजाने की खोज शुरू नहीं की होती, तो भारत की प्राचीनता का एक महत्वपूर्ण टुकड़ा दफन हो जाता।