नक्सलगढ़ सुकमा में 21 साल बाद खत्म हुआ भगवान राम का वनवास, सीआरपीएफ ने खोला मंदिर का कपाट
सुकमा
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भक्तों को जहां 500 सालों का इंतजार करना पड़ा वैसा ही सुकमा के गांव वालों को अपने गांव में बने प्रभु राम के मंदिर में दर्शन करने इंतजार करना पड़ा. ये घटना है नक्सली दंश झेल रहे सुकमा जिले में लखापाल और केरलापेंदा गांव की.जहां राम मंदिर के कपाट खुलने के लिए भक्तों को 21 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा.
21 साल से बंद पड़े राम मंदिर को सीआरपीएफ ने खुलवाया: सुकमा जिले के धुर नक्सल प्रभावित लखापाल व केरलापेंदा गांव में करीब 5 दशक पहले राम मंदिर बनवाया गया. मंदिर में प्रभु राम, सीता व लक्ष्मण की संगमरमर की मूर्तियों की स्थापना की गई. लेकिन धीरे धीरे नक्सलवाद के बढ़ते प्रकोप के कारण 2003 में गांव में स्थित राम मंदिर में पूजा पाठ बंद करवा दिया. जिसके बाद कपाट पूरी तरह से बंद रहे. 14 मार्च 2023 को लखापाल में सीआरपीएफ कैंप खुला. केरलापेंदा गांव में एरिया डॉमिनेशन के दौरान जवानों ने जीर्णशीर्ण अवस्था में मंदिर देखा. गांव वालों ने पूछताछ में बताया कि काफी ऐतिहासिक मंदिर है जहां पहले मेला भी लगता था. ग्रामीणों ने ये भी बताया कि नक्सलियों ने मंदिर को बंद करवा दिया. गांव वालों ने सीआरपीएफ के जवानों से मंदिर खुलवाने का आग्रह किया. जिसके बाद जवान इस काम में लग गए. सोमवार को मंदिर के कपाट 21 साल बाद खोले गए. मंदिर में पूजा अर्चना की गई. इस दौरान काफी संख्या में गांव वाले भी शामिल हुए.
साल 2003 में नक्सलियों ने मंदिर में तोड़फोड़ की और इसे बंद करवा दिया. मंदिर में पूजा करने वाला परिवार चोरी छिपे पूजा करने लगा. कैंप लगने के बाद ग्रामीणों में काफी उत्साह आया. गांव वालों ने सीआरपीएफ से मंदिर का पुनर्त्थान करने का आग्रह किया. गांव वालों के साथ मिलकर सीआरपीएफ 74वीं बटालियन ने मंदिर की साफ सफाई की. मंदिर गांव वालों को सौंप दिया गया.-हिमांशु पांडे, कमांडर, सीआरपीएफ 74वीं बटालियन
राममंदिर के स्थापना की कहानी: साल 1970 में मंदिर की स्थापना बिहारी महाराज ने की. मंदिर बनवाने के लिए निर्माण सामग्री सुकमा जिला मुख्यालय से लाई गई. जिसे पूरे गांव के लोग लगभग 80 किलोमीटर पैदल चलकर सिर पर ढोकर गांव पहुंचे. पूरे जोश के साथ मंदिर का निर्माण करवाया गया. इस काम में गांव के सभी लोगों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.
मंदिर स्थापना के बाद गांव में मांस मदिरा पर था पूरी तरह से प्रतिबंध: बताया जाता है कि मंदिर स्थापना के बाद पूरा क्षेत्र व पूरा गांव श्रीराम की भक्ति में लीन हो गया. सभी ने कंठी धारण किया. कंठी धारण करने के बाद मांस मदिरा का त्याग करना पड़ता है. आदिवासी इलाके में जहां पूरा गांव मांसाहारी और महुए की बनी शराब का सेवन करते हैं वहां गांव के लगभग 95 प्रतिशत लोगों ने इसका त्याग कर दिया. नक्सलयिों को ये बात रास नहीं आई, जिससे नाराज नक्सलियों ने साल 2003 में मंदिर में पूजा पाठ पर पाबंदी लगवा दी और मंदिर बंद करवा दिया.
कभी लगता था भव्य मेला, अयोध्या से पहुंचते थे साधु संत: गांव वाले बताते हैं कि इस गांव में रामनवमी और दूसरे तीज त्योहारों पर भव्य मेला लगता था. जिसमें शामिल होने अयोध्या से साधु संत पहुंचते थे. आसपास के गांव वालों के साथ ही पूरे बस्तर से लोग पहुंचते थे. नक्सलियों के दबाव के कारण पहले मेला लगना बंद हुआ फिर धीरे धीरे पूजा पाठ बंद हो गई. लेकिन अब 21 साल बाद अयोध्या राम मंदिर निर्माण के साथ ही सुकमा में बंद पड़े राम मंदिर के खुलने से गांव वाले काफी उत्साहित दिखे.