छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के इस जंगल में है दुर्लभ प्रजाति के नाग नागिन, मवेशियों को चराने पर प्रतिबंध

बस्तर: छत्तीसगढ़ के बस्तर में हमेशा से ही राजाओं महाराजाओं का शासन रहा. कालांतर में नागवंशी राजाओं ने बस्तर में शासन किया और अपने शासनकाल के दौरान पूजा अर्चना के लिये कई मंदिरों की स्थापना की. छिन्दक नागवंशी का चिन्ह नाग का सांप था. लिहाजा सभी मूर्तियों पर नाग सांप बनाया करते थे. छत्तीसगढ़ के बस्तर में आज भी छिन्दक नागवंशी राजाओं द्वारा बनाये गए या स्थापित किये गए मूर्ति-मंदिर मौजूद हैं.

Rare Species of Cobra Snakes

11वीं शताब्दी के शेष नाग और नागिन की मूर्तियां: बस्तर में नागफनी मंदिर है. बताया जाता है कि ये मंदिर 11वीं शताब्दी में बनाया गया था. बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से 90 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर मौजूद है. जो पौराणिक नगरी बारसूर मार्ग पर स्थित है. इस मंदिर के भीतर शेष नाग और नागिन के जोड़े की मूर्ति मौजूद है. मंदिर के भीतर भगवान गणेश की विशाल मूर्ति भी मौजूद है. यहां दर्जनों प्राचीन मूर्तियों को सहेजकर रखा गया है. नागपंचमी पर हर साल यहां भव्य मेला लगता है.इस मंदिर में सिर्फ 11वीं शताब्दी के शेष नाग और नागिन की मूर्तियां स्थापित नहीं है. बल्कि सूर्यदेव, राम लक्ष्मण, श्रीकृष्ण, बलराम, बजरंग बली की मूर्तिया भी मौजूद है. नागफनी का मंदिर विभिन्न प्रजाति की वन औषधियों के लिए भी चर्चित है.

जंगल में दुर्लभ प्रजाति के नाग नागिन, मवेशियों को चराने पर प्रतिबंध: पौराणिक मान्यता के अनुसार नागफनी गांव के जंगलों में वासुकी, तक्षक, शंख, कुलिक, पदम, महापदम जैसे कई नामों के नाग पाए जाते थे. वहीं सुमेधा, सुप्रधा, दिधिप्रिया, श्वेतमुखी, सुनेत्रा, सुगंधि, पद्मा जैसे नामों के नागिन का वास रहा. कालांतर में नागवंशी राजाओं ने ही इस गांव में मंदिर बनवाया था. नागों की उपलब्धता के कारण इसका नाम नागफनी पड़ा. सबसे खासबात यह है कि आज भी इन जंगलों में मवेशियों को चराने के लिए प्रतिबंध लगाया गया है. क्योंकि अभी भी इस जंगल में दुर्लभ प्रजाति के नाग सांप पाए जाते हैं.

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