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किसान आंदोलन, सिख और अब कृषि कानून… कंगना रनौत के वो बयान, जो बीजेपी के लिए बन गए मुसीबत!

नई दिल्ली

बॉलीवुड एक्ट्रेस और बीजेपी सांसद कंगना रनौत फिर चर्चा में हैं. उन्होंने वापस लिए गए तीनों कृषि कानून फिर लागू करने की मांग उठाई है. कंगना के बयान पर विपक्ष हमलावर हो गया है और विरोध कर रहा है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब कंगना ने किसानों से जुड़े मामले में टिप्पणी की है. तीन साल पहले उन्होंने महिला आंदोलनकारियों पर पैसे लेकर धरने पर बैठने का आरोप लगाया था. उसके बाद उन्होंने सिखों को लेकर भी विवादास्पद टिप्पणी की थी.

महीनेभर भीतर यह दूसरी बार है जब बीजेपी ने कंगना की टिप्पणियों से खुद को अलग कर लिया है. इस बार भी बीजेपी ने कंगना के बयान को ‘व्यक्तिगत बयान’ बताया है. आइए जानते हैं कंगना के विवादित बयान….

कंगना रनौत हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से बीजेपी सांसद हैं. उन्होंने इसी साल बीजेपी जॉइन की थी. कंगना ने लोकसभा चुनाव में पॉलिटिकल डेब्यू किया और कांग्रेस नेता, हिमाचल प्रदेश सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह को हराया. विक्रमादित्य, पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे हैं. विक्रमादित्य की मां प्रतिभा सिंह मंडी से कांग्रेस सांसद रही हैं.

बीजेपी सांसद कंगना रनौत ने मंगलवार को यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि तीनों विवादास्पद कृषि कानून को फिर से लागू करना चाहिए. कंगना का कहना था कि किसानों को खुद ये कानून लागू करने की मांग करना चाहिए. कंगना का कहना था कि मुझे पता है कि यह बयान विवादास्पद हो सकता है लेकिन तीन कृषि कानूनों को वापस लाया जाना चाहिए. किसानों को खुद इसकी मांग करनी चाहिए. कंगना ने तर्क दिया कि किसानों के लिए तीनों कानून फायदेमंद थे, लेकिन कुछ राज्यों में किसान संगठनों के विरोध के कारण सरकार ने उन्हें निरस्त कर दिया. उन्होंने कहा, किसान देश के विकास में ताकत का स्तंभ हैं. मैं उनसे अपील करना चाहती हूं कि वे अपने भले के लिए कानूनों को वापस लेने की मांग करें.

कंगना ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि किसान आंदोलन के जरिए भारत में बांग्लादेश जैसी स्थिति पैदा करने की तैयारी थी. उन्होंने कहा, जो बांग्लादेश में हुआ है वो यहां (भारत) होते हुए भी देर नहीं लगती, अगर हमारा शीर्ष नेतृत्व सशक्त नहीं होता. यहां पर जो किसान आंदोलन हुए, वहां पर लाशें लटकी थीं, वहां रेप हो रहे थे. किसानों की बड़ी लंबी प्लानिंग थी, जैसे बांग्लादेश में हुआ. इस तरह के षड्यंत्र… आपको क्या लगता है किसानों…? चीन, अमेरिका… इस तरह की विदेशी शक्तियां यहां काम कर रही हैं.

हालांकि, कंगना के बयान के बाद बीजेपी की सफाई आई और कहा, ये पार्टी की राय नहीं है. पार्टी के नीतिगत विषयों पर बोलने के लिए कंगना रनौत को ना तो अनुमति है और ना ही वे बयान देने के लिए अधिकृत हैं. बीजेपी की ओर से कंगना रनौत को निर्देशित किया गया है कि वे इस तरह के कोई बयान भविष्य में ना दें.

नवंबर 2021

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की तो कंगना ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया था और किसानों आंदोलन को दोषी ठहराया था. उन्होंने कहा कि भारत को इस तरह के आंदोलनों से कमजोर किया जा रहा है और किसानों ने अपने हितों के लिए राष्ट्र के हितों की अनदेखी की है.

फरवरी 2021

किसान आंदोलन के समर्थन में जब अंतरराष्ट्रीय हस्तियों पॉप स्टार रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग ने ट्वीट किया तो कंगना ने नाराजगी जताई थी और कहा था, ये भारत को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा हैं. उन्होंने रिहाना को ‘मूर्ख’ और किसान आंदोलन को ‘आतंकवाद’ करार दिया था. कंगना ने लिखा था- कोई इस बारे में बात इसलिए नहीं कर रहा है क्योंकि वे किसान नहीं हैं वे आतंकवादी हैं, जो भारत को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि चीन हमारे देश पर कब्जा कर सके.

दरअसल, रिहाना ने 2 फरवरी 2021 को CNN की एक स्टोरी का लिंक शेयर किया और लिखा- आखिर हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं? इस ट्वीट के साथ उन्होंने हैशटैग #FarmersProtest भी लगाया.

नवंबर 2021

कंगना ने किसान आंदोलन में शामिल कुछ लोगों पर ‘खालिस्तानी आतंकवादी’ होने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, देश को विभाजित करने की साजिश हो रही है और इसमें खालिस्तानी तत्व शामिल हैं. उन्होंने इसे देश को तोड़ने की साजिश करार दिया था. कंगना ने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा था, खालिस्तानी आतंकवादी आज सरकार को परेशान कर रहे हैं… लेकिन हमें एक महिला को नहीं भूलना चाहिए… एकमात्र महिला प्रधानमंत्री ने इन्हें अपनी जूतियों के नीचे कुचल दिया था. चाहे उन्होंने इस देश को कितनी भी तकलीफ क्यों ना दी हो… उन्होंने अपनी जान की कीमत पर उन्हें मच्छरों की तरह कुचल दिया… लेकिन देश के टुकड़े नहीं होने दिए. इस बयान के बाद सिख समुदाय में गुस्सा भड़क गया था. कंगना के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज की गईं. इस बयान ने भी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाई थीं. सिख समुदाय को बीजेपी का महत्वपूर्ण समर्थन आधार माना जाता है​.

दिसंबर 2020

कंगना ने किसान आंदोलन में शामिल बुजुर्ग महिला आंदोलनकारियों पर विवादास्पद टिप्पणी की थी और कहा था, ये महिलाएं पैसे लेकर प्रदर्शन में शामिल हो रही हैं. उन्होंने शाहीन बाग की ‘दादी’ का जिक्र करते हुए एक महिला को भी निशाना बनाया था और कहा था कि 100-100 रुपये लेकर ये प्रदर्शन करती हैं. इस बयान के बाद विवाद बढ़ा और बीजेपी के अंदर असहज स्थिति पैदा हो गई.

जब पैसे लेकर किसान आंदोलन में शामिल होने का लगाया आरोप

कंगना ने कथित तौर पर पंजाब की एक महिला किसान की गलत पहचान करते हुए बिलकिस बानो बताया था. हालांकि, वो 80 साल की बुजुर्ग महिला किसान थीं. दरअसल, बिलकिस बानो नाम की महिला ने पहले दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थीं. कंगना ने एक ट्वीट शेयर किया था, जिसमें आरोप लगाया था कि ‘शाहीन बाग दादी’ भी दिल्ली बॉर्डर पर नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों के आंदोलन में शामिल हुई हैं. उन्होंने बिलकिस बानो समेत दो बुजुर्ग महिलाओं की तस्वीरों के साथ पोस्ट को रीट्वीट किया था और लिखा था, ”ये वही दादी हैं जिन्हें टाइम मैगजीन की 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल किया गया था…. और ये 100 रुपये में उपलब्ध हैं.”

कंगना ने जो ट्वीट किया था, उसमें एक बुजुर्ग महिला दिखाई दे रही थीं, जो भले ही झुककर चल रही थीं, लेकिन उन्होंने किसान आंदोलन का झंडा बुलंद किए हुए था. उनका नाम मोहिंदर कौर था. बाद में पता चला कि दोनों महिलाएं अलग-अलग हैं. इस पर कंगना ने ट्वीट को हटा दिया था.

कंगना के बयान को किसानों और महिलाओं के लिए अपमानजनक माना गया​. इसी साल जून में चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर CISF (केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल) की एक महिला कांस्टेबल ने कंगना को थप्पड़ मार दिया था. महिला कांस्टेबल का कहना था कि उनकी मां ने किसानों के विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लिया था. कंगना के ‘पैसे लेने’ वाले बयान से उसे ठेस पहुंची है.

केंद्र को वापस लेने पड़े थे कृषि कानून

बता दें कि किसान यूनियनों के लंबे विरोध के बाद नवंबर 2021 में केंद्र सरकार को ये कानून वापस लेने पड़े थे. दरअसल, तीनों कृषि कानून निरस्त करने की मांग को लेकर किसान सिंघु, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर डटे हुए थे. लगातार 14 महीने तक विरोध-प्रदर्शन चला था. 26 जनवरी 2021 को किसानों ने नई दिल्ली में ट्रैक्टर से परेड की थी और लाल किले में घुसकर बवाल काटा था.

बीजेपी के लिए क्या मुसीबत?

कंगना ने हाल में महीनेभर के भीतर किसान आंदोलन से जुड़े मामले में दूसरी बार बयान दिया है. दोनों बार बीजेपी ने उनके बयान से किनारा किया है. यह बयान ऐसे समय आया है, जब हरियाणा में विधानसभा चुनाव हैं और बीजेपी वहां एंटी इनकंबेंसी से जूझ रही है. अगस्त में कंगना ने जब बयान दिया था, तब पार्टी ने उन्हें सख्त हिदायत भी दी थी, लेकिन फिर नए बयान ने विपक्ष को हमला करने का मौका दे दिया है.

चूंकि, हरियाणा में अच्छी खासी संख्या में किसान वोटर्स हैं और ये किसान किसी भी पार्टी का भविष्य तय करने में अहम माने जाते हैं. राज्य में 10 साल से बीजेपी की सरकार है. किसान आंदोलन की वजह से शंभू बॉर्डर बंद है. कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया है. कांग्रेस नेता भूपेंद्र हुड्डा ऐलान कर रहे हैं कि अगर कांग्रेस सरकार बनती है तो हम शंभू बॉर्डर खुलवाएंगे. दरअसल, संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा के नेतृत्व में किसानों ने ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया था. हालांकि, इन किसानों को शंभू बॉर्डर और खनौरी बॉर्डर पर रोक दिया गया है. ये किसान फरवरी से पंजाब और हरियाणा सीमा पर डेरा जमाए हैं.

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