बलौदा में सप्त दिवसीय श्री शिव कथा भव्य कलश यात्रा के साथ शुभारंभ…..
जांजगीर-चांपा
बलौदा में सप्त दिवसीय श्री शिव कथा का शुभारंभ दिनांक 21/10/2021 को आयोजक श्री महेश कुमार बहोरन लाल सोनी जी द्वारा किया गया जिसमें भव्य कलश यात्रा के साथ कथा का शुभारंभ किया गया।कथा व्यास :श्रीमदजगद्गुरु द्वाराचार्य, श्री मलूकपीठाधीश्वर स्वामि श्री डॉ राजेन्द्र दास देवाचार्य जी महाराज के चरनानुरागी शिष्य आचार्य पं. श्री मनोज कृष्ण शास्त्री(श्री गुरुचरण दास)(श्री धाम वृंदावन) हैं।
महराज श्री ने श्री शिव कथा के प्रथम एवं द्वितीय दिवस में श्री शिव कथा के महात्म्य के बारे में बताएं।उन्होंने कहा कि मनुष्य के एक जन्म नहीं अपितु अनंत जन्मों का भाग्य उदय होता है तभी कथा श्रवण में हमारी रुचि होती है। भगवान की कृपा होने पर ही हमें सत्संग का लाभ मिल पाता है ।ऐसे सूंदर,भव्य,विशाल एवं ऐतिहासिक भक्तिपूर्ण श्री शिव कथा का आयोजन प्रभु की कृपा से ही सम्भव है।महराज जी ने समस्त श्रोता गण को उनके भक्ति व कथा श्रवण की तीव्र इच्छा की प्रंशसा करते हुए कहा कि आप निश्चित ही सौभाग्यशाली हैं जिसके कारण आप सभी जीव मात्र को कल्याण करने वाली अति पावन श्री शिव कथा का रसपान करने को मिल रहा है।
महराज श्री ने सत्संग की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए कहा कि”बिनु सत्संग विवेक ना होई,राम कृपा बिनु सुलभ ना सोई”अर्थात व्यक्ति को विवेक ,ज्ञान केवल सत्संग से प्राप्त होते हैं, परन्तु यह सत्संग भी केवल भगवान की कृपा से ही जीव को सुलभ होते हैं।और भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए पहले कृपा के पात्र, योग्य बनना आवश्यक है ।और वह योग्यता क्या है सत्संग के प्रति हमारी तीव्र जिज्ञासा जिसके कारण ही भगवान हमपर कृपा करने के लिए बाध्य हो जाते है ।महराज जी ने विवेक की परिभाषा बड़े ही उत्कृष्ठ उदाहरण के माध्यम से भक्तों को समझाया ,उन्होंने कहा कि यदि आप अपने माता पिता की सेवा करते हैं तो यह आपकी बुद्धि है,जो यह काम आपसे करवाती है परंतु यदि माता पिता की सेवा आप भगवान समझ कर करते हैं तो यह आपको आपका विवेक करवाता है,और ऐसी विवेक हमें सत्संग के अलावा कहाँ प्राप्त होगा।
श्री शिव कथा के द्वितीय दिवस में व्यास पीठ से श्री महाराज जी ने कथा में भगवान की शिवलिंग की उत्पत्ति के बारे में बताते हुये कहा कि श्रीशिव पुराण में शिवलिंग की उत्पत्ति का वर्णन अग्नि स्तंभ के रूप में किया गया है,जो समस्त कारणों का कारण हैं।श्री लिंगपुराण में भगवान शिव ने स्वयं को अनादिदेव अनंत अग्नि स्तंभ के रूप में लाकर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु को क्रमशः अपना ऊपर तथा निचला भाग ढूँढने के लिए कहा और उनकी श्रेष्ठता तब साबित हुई जब दोनों आदि और अंत का पता न लगा सकें।इसप्रकार से जो आदि अनंत है वही पिंड स्तंभ ही साक्षात शिवलिंग है।तदुपरांत महराज श्री ने शिवलिंग के प्रकारों के बारे में भी वृहत रूप एवं सहज रूप से श्रोताओं को बतलाया।
महराज जी ने भगवान शिव की महिमा के बारे में बताते हुए कहा कि भगवान शिव ही सबके आराध्य हैं वें सिर्फ हमारे ही नहीं अपितु परमपिता परमेश्वर अखिल ब्रम्हांड नायक भगवान नारायण के भी आराध्य हैं।शिव ही आदि ,अनादि और अनंत हैं।यह पूरा ब्रम्हांड संहार के समय शिवलिंग में ही विलीन हो जाता है।इसलिए ही शिव जी को संहारक कहते हैं। इसप्रकार से महराज श्री के मुखारबिंद से भगवान शिव की महिमा का श्रवण बड़ा ही आनंददायक था।
अपनी विचार शैली से एवं दृष्टांत से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दियें।