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जांजगीर में बच्चों ने मांगा छेरछेरा:’छेरछेरा कोठी के धान ला हेर हेरा’ से गूंज उठी गलियां; युवाओं ने किया पारंपरिक डंडा नृत्य

जांजगीर-चांपा जिले में छेरछेरा त्योहार धूमधाम से मनाया गया। यहां गांव और शहर की गलियां ‘छेरछेरा कोठी के धान ला हेर हेरा’ से गूंज उठी हैं। बच्चों की टोलियां गांव-गांव में जाकर छेरछेरा मांग रही हैं, साथ ही युवा पारंपरिक डंडा नृत्य कर लोगों का मन मोह रहे हैं।

छेरछरा धान के दान का महापर्व है। छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है। आज सुबह से ही बच्चे, युवक और युवतियां हाथ में टोकरी और बोरी लेकर घर-घर छेरछेरा मांगते हैं। वहीं युवकों की टोलियां डंडा नृत्य कर घर-घर पहुंचती हैं। धान मिसाई हो जाने के चलते गांव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेरछेरा मांगने वालों को दान करते हैं।

माना जाता है कि अन्न के दान से उनका घर धन-धान्य और खुशियों से परिपूर्ण रहता है। छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा पर मनाया जाता है।

बच्चों से लेकर बुजुर्ग भी जाते हैं छेरछेरा मांगने

छेरछेरा पर्व पर न केवल बच्चे बल्कि बुजुर्ग और युवा भी घर-घर जाकर धान मांगते हैं। घरों के सामने युवा मंदार और मंजीरे की धुन पर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोक गीत गाते हुए डंडा नृत्य करते हैं।

छेरछेरा पर्व पर माताएं बनाती हैं छत्तीसगढ़ी रोटी

छेरछेरा पर्व पर महिलाएं छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजन बनाती हैं, जिसमें यहां की खास रोटी शामिल है। साथ ही दाल का वड़ा, फरहा, सुहारी रोटी, ठेठरी, कुर्मी कुशली, गुचकुलिया रोटी बनाई जाती है।

इसलिए मनाया जाता है छेरछेरा पर्व

छेरछेरा को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं। छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्योहार तब मनाया जाता है, जब किसान अपने खेतों से फसल काटकर और उसकी मिसाई कर अन्न (नया चावल) का अपने घरों में भंडारण कर चुके होते हैं।

माना जाता है कि दान देना महा पुण्य का काम है, इसलिए किसान धान का दान देकर पुण्य कमाने के लिए छेरछेरा त्योहार मनाते हैं। इस दिन बच्चे और युवा अपने गांव के सभी घरों में जाकर छेरछेरा कहकर अन्न का दान मांगते हैं।

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