मेकाहारा में तीन साल की बच्ची को मिली नई जिंदगी, डेढ़ किलो के ट्यूमर का हुआ रिस्की ऑपरेशन
रायपुर
छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल डॉक्टर भीमराव अंबेडकर हॉस्पिटल में पहली बार 3 साल की बच्ची के फेफड़ों से डेढ़ किलो का ट्यूमर निकालकर सफल ऑपरेशन किया गया. पोस्टीरियर मेडिसिनल ट्यूमर के ऑपरेशन की सफलता का यह पहला केस है. पूरे देश में गिने चुने जगह ही इस तरह के केस सफल होते हैं. जानकारी के अनुसार 90 से 95% केस में जान जाने का खतरा बना होता है.
डॉ कृष्णकांत साहू ने पहली बार बच्ची के छाती से निकाला ट्यूमर : यह ऑपरेशन हार्ट चेस्ट और वैस्कुलर सर्जरी विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉक्टर कृष्णकांत साहू और उनकी टीम ने किया था. 3 साल की मासूम बच्ची के छाती के अंदर हार्ट के पीछे डेढ़ किलोग्राम का ट्यूमर था. मेडिकल भाषा में इसे गैंगलियो न्यूरो फाइब्रोमा कहा जाता है.जिसकी पहचान लेफ्ट हीमोथोरेक्स नाम से की जाती है. वहीं सामान्य भाषा में ट्यूमर को पोस्टीरियर मेडिटेस्टाइनल ट्यूमर कहा जाता है.
छाती के अंदर हार्ट के पीछे डेढ़ किलोग्राम का ट्यूमरकौन है पीड़ित बच्ची ? : बच्ची रायगढ़ के टूडरी गांव की रहने वाली है. जन्म के बाद से बच्ची पूरी तरह सामान्य थी. लेकिन 2 साल की उम्र तक वह चलने में असमर्थ हो गई. जिसके बाद परिवार ने उसे ओड़िसा के बुरला मेडिकल कॉलेज में दिखाया. जहां उसकी बीमारी का पता नहीं चल सका. इसके बाद परिवार वालों ने रायपुर एम्स में जांच करवाई. जहां बच्ची के स्पाइनल कॉर्ड में ट्यूमर का पता चला. रायपुर एम्स के डॉक्टरों ने स्पाइनल कॉर्ड से ट्यूमर निकालकर सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया. लेकिन ट्यूमर पूरी तरह बाई छाती में फैल गया था. जिसके बाद से रायपुर एम्स के डॉक्टरों ने उन्हें बच्ची को अंबेडकर अस्पताल के हार्ट चेस्ट और वैस्कुलर सर्जन डॉक्टर कृष्णकांत साहू के पास रेफर कर दिया.
पोस्टीरियर मेडिटेस्टाइनल ट्यूमर”बच्ची को पहले रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर था. इस वजह से उसका ऑपरेशन रायपुर एम्स में किया गया. लेकिन रायपुर एम्स की टीम भी मुझ पर बहुत भरोसा करती है. इसीलिए छाती में पहले ट्यूमर के ऑपरेशन के लिए बच्ची को मेरे पास रेफर किया गया. यह मेरी ड्यूटी है कि मैं गरीब और जरूरतमंद मरीजों को समय पर इलाज मुहैया करा सकूं. छाती में पहले ट्यूमर का इलाज प्रदेश में केवल मेकाहारा में होता है.” डॉ कृष्णाकांत साहू, विभाग अध्यक्ष
वैस्कुलर सर्जरी4 दिनों तक वेंटिलेटर पर थी बच्ची
अंबेडकर अस्पताल में बच्ची की छाती से महत्वपूर्ण अंगों को सुरक्षित रखते हुए डेढ़ किलो का ट्यूमर निकाला गया. ट्यूमर का साइज इतना बड़ा था कि इस टुकड़ों में निकलना पड़ा. स्पाइनल कॉर्ड की जिस जगह से ट्यूमर का जन्म हुआ. वहां पर भी बारीकी से ट्यूमर के हर हिस्से से निकाला गया. स्पाइनल कॉर्ड को सुरक्षित रखते हुए दूर मैटर को भी रिपेयर किया गया जिससे स्पाइल फ्लुआइड लीकेज ना हो. मरीज को चार दिन तक वेंटिलेटर में रखना पड़ा. वर्तमान में बच्ची को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है.