अंतरिक्ष से धरती पर आ रही आफत, आसमान में आग का गोला बन जाएगा सैटेलाइटों का ‘दादा’, ऐसे होगा अंत
लंदन
यूरोपीय स्पेस एजेंसी की एक बेहद पुरानी सैटेलाइट कुछ ही घंटों में पृथ्वी पर गिरने वाली है। इस सैटेलाइट का नाम ERS-2 है, जिसे 1995 में लॉन्च किया गया था। इसने पृथ्वी अवलोकन क्षमताओं और टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2011 में इसका परिचालन समाप्त हो गया। तब से यह धीरे-धीरे पृथ्वी के करीब आ रही है। बुधवार को किसी भी समय यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करेगा और हवा में ही जलने लगेगा। यूरोपीय स्पेस एजेंसी का कहना है कि दो टन वजन वाले इस सैटेलाइट का ज्यादातर हिस्सा गिरने के दौरान जल जाएगा।
संभव है कि कुछ मजबूत हिस्से भयानक गर्मी का सामना करते हुए बच जाएं, लेकिन इन टुकड़ों के आबादी वाले क्षेत्रों में गिरने की संभावना बेहद कम है। फिलहाल वह दुनिया के किसी भी कोने में गिर सकते हैं। लेकिन पृथ्वी का ज्यादातर हिस्सा समुद्र से ढका है। ऐसे में संभव है कि जो भी मलबा बचेगा वह समुद्र में जाकर गिरेगा। यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) के अर्थ ऑब्जर्वेशन ग्राउंड सेगमेंट विभाग के मिर्को अल्बानी ने कहा, ‘जो भी तत्व अंतरिक्ष से वापस वायुमंडल में प्रवेश करेगा वह रेडियोएक्टिव या जहरीला नहीं होगा।’
क्या काम करती थी सैटेलाइट?
ESA ने 1990 के दशक में दो लगभग समान पृथ्वी रिमोट सेंसिंस सैटेलाइट लॉन्च किया था। ये अपने समय के सबसे अच्छे थे, जो भूमि, महासागरों और हवा में परिवर्तनों को ट्रैक करने के लिए उपकरणों का एक समूह रखते थे। उन्होंने बाढ़ की निगरानी की, महाद्वीप और महासागर सतह के तापमान को मापा, बर्फ के मैदानों की मूवमेंट का पता लगाया और भूकंप के दौरान जमीन की हलचल को महसूस किया। ERS-2 विशेष रूप से पृथ्वी की सुरक्षा करने वाली ओजोन लेयर के आकलन के लिए लॉन्च की गई थी।
पृथ्वी पर गिराना चाहते थे वैज्ञानिक
आज के समय यूरोप में पृथ्वी अवलोकन करने वाली सैटेलाइटों का इन्हें ‘दादा’ कहा जाता है। डॉ. राल्फ कॉर्डी ने कहा, ‘बिल्कुल! टेक्नोलॉजी के संदर्भ में आप ईआरएस से यूरोप के कोपरनिकस/सेंटिनल सैटेलाइटों तक एक सीधी रेखा खींच सकते हैं, जो आज ग्रह की निगरानी करते हैं। ईआरएस वह जगह है जहां से यह सब शुरू हुआ।’ दोनों सैटेलाइटों में ERS-2 पहली है, जो धरती पर गिरेगी। मूल रूप से पृथ्वी से 780 किमी ऊपर यह स्थित थी। 2011 में इसके ईंधन भंडार का इस्तेमाल कर वैज्ञानिकों ने ऊंचाई को 570 किमी तक कम कर दिया था। इस उम्मीद में कि 15 वर्षों में यह धरती पर गिर जाएगी।