रायपुर। डीएमएफ घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) रायपुर क्षेत्रीय कार्यालय ने निलंबित आईएएस अफसर रानू साहू, माया वरियर के साथ राधेश्याम मिर्झा, भुनेश्वर सिंह राज, वीरेंद्र कुमार राठौर, भरोसा राम ठाकुर, संजय शेंडे, मनोज कुमार द्विवेदी, हृषभ सोनी एवं राकेश कुमार शुक्ला की 23.79 करोड़ रुपए की संपत्ति को कुर्क किया है। इसमें 21.47 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति है, जिसे अटैच किया है। यह संपत्ति डीएमएफ घोटाले से अर्जित की गई ब्लैक मनी से खरीदी गई थी।
90.35 करोड़ रुपए का घोटाला
डीएमएफ घोटाला मामले में ईडी ने रानू साहू, माया वरियर एवं मनोज कुमार द्विवेदी को गिरफ्तार किया जा चुका है, वहीं शेष 7 आरोपी अब तक गिरफ्त से बाहर हैं। ईडी ने इस घोटाला मामले में 9 दिसंबर को प्रेस नोट जारी किया है, जिसके अनुसार इस घोटाला मामले में अनंतिम कुर्की का आदेश जारी किया है। इसके तहत इन सभी आरोपियों की भूमि, आवासीय संपत्तियां, सावधि जमा और बैंक शेष सहित 21.47 करोड़ रुपये मूल्य की अचल और 2.32 करोड़ रुपए की चल संपत्तियां मिलाकर 23.79 करोड़ रुपए की संपत्ति कुर्क की है।
रानू-माया की 17 दिसंबर तक बढ़ी न्यायिक रिमांड
डीएमएफ घोटाला मामले में मंगलवार को रानू साहू और माया वरियर को ईडी कोर्ट में पेश किया गया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों की 7 दिन की न्यायिक रिमांड बढ़ा दी है। इस तरह अब दोनों 17 दिसंबर तक न्यायिक रिमांड पर रहेंगे। इसके अलावा इस मामले में गिरफ्तार मनोज द्विवेदी को भी कोर्ट में पेश किया गया।
2.32 करोड़ रुपए के नकदी-आभूषण जब्त
जांच के दौरान ईडी ने ठेकेदारों, लोक सेवकों और उनके सहयोगियों के विभिन्न परिसरों में कई तलाशी ली और इसके परिणामस्वरूप 2.32 करोड़ रुपये की बेहिसाबी नकदी और आभूषण जब्त किए गए और जांच से पता चला कि जब्त की गई रकम डीएमएफ कार्यों के निष्पादन के दौरान इन लोक सेवकों द्वारा प्राप्त रिश्वत राशि का हिस्सा थी। इस तरह इस मामले में अब तक कुल अपराध आय (पीओसी) 90.35 करोड़ रुपये है, जिसमें से अब तक 23.79 करोड़ रुपये की अचल और चल संपत्तियां अनंतिम रूप से कुर्क की गई हैं। इस घोटाले की जांच अभी जारी है।
15 से 42 प्रतिशत तक कमीशन का खेल
उल्लेखनीय है कि यह कार्रवाई जांच धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के प्रावधानों के तहत की गई है। ईडी ने आईपीसी 1860 की विभिन्न धाराओं के तहत छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा दर्ज 3 अलग-अलग एफआईआर के आधार पर जांच शुरू की, जिसमें आरोप लगाया गया था कि राज्य सरकार के अधिकारियों ने ठेकेदारों के साथ मिलीभगत करके जिला खनिज निधि (डीएमएफ) को हड़पने की साजिश रची। डीएमएफ ठेकों को धोखाधड़ी से हासिल करने के लिए, ठेकेदारों ने भ्रष्ट सार्वजनिक अधिकारियों को अनुबंध मूल्य के 15 से 42 प्रतिशत तक का भारी मात्रा में कमीशन, अवैध रिश्वत का भुगतान किया। ईडी की जांच ने डीएमएफ घोटाले के तौर-तरीकों का खुलासा किया है और यह पता चला है कि ठेकेदारों के बैंक खाते में जमा किए गए धन का बड़ा हिस्सा ठेकेदारों द्वारा सीधे नकद में निकाल लिया गया था या आवास प्रवेश प्रदाताओं को स्थानांतरित कर दिया गया था, जिसके बदले ठेकेदारों को नकद प्राप्त हुआ था। आवास प्रवेश प्रदाताओं के साथ इन लेन-देन को विक्रेताओं द्वारा बिना किसी वास्तविक खरीद के माल की खरीद के रूप में दिखाया गया था। विक्रेताओं द्वारा प्राप्त नकदी का उपयोग डीएमएफ कार्य आवंटित करने और/या इस संबंध में विक्रेता के बिलों को मंजूरी देने के लिए जिम्मेदार सार्वजनिक अधिकारियों को रिश्वत देने के उद्देश्य से किया गया था और इस नकदी का एक हिस्सा विक्रेताओं द्वारा अपने लाभ के लिए भी इस्तेमाल किया गया था।