छत्तीसगढ़

करैत सांप को 10 महीने की बच्ची ने दिया मात, 97 घंटे वेंटिलेटर पर रहकर जीती जिंदगी की जंग

जगदलपुर: “जाको राखे साईंया, मार सके न कोए” का अर्थ है कि जिस पर भगवान की कृपा हो, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यह कहावत भगवान की असीम शक्ति और भक्तों की रक्षा करने की उनकी क्षमता में विश्वास को भी दर्शाता है. जगदलपुर में कुछ ऐसा ही हुआ है. यहां 10 महीने की बच्ची को माता पिता लेकर आए थे. बच्ची की हालत काफी नाजुक थी. घर में सोते समय बच्ची को जहरीले करैत सांप ने डस लिया था.

करैत सांप के जहर को 10 महीने की बच्ची ने दिया मात

बच्ची को लेकर पर परिजन आनन फानन में पहले बीजापुर जिला अस्पताल ले गए. वहां से डॉक्टरों ने बच्ची को जगदलपुर रेफर कर दिया. इसके बाद परिजन बच्ची को लेकर डिमरापाल मेडिकल कॉलेज पहुंचे. जहर का काफी असर बच्ची पर हो चुका था. डॉक्टरों ने तुरंत बच्ची का इलाज शुरु किया. बच्ची की लगातार डॉक्टर निगरानी करते रहे. करीब 4 दिन यानि 97 घंटे तक डॉक्टरों की सघन निगरानी में रहने के बाद बच्ची की जान बच गई. बच्ची की जान बचाने के बाद डॉक्टर भी काफी खुश हैं. बच्ची के परिजन डॉक्टरों को बार बार धन्यवाद दे रहे हैं. डॉक्टरों ने जिस तरह से बच्ची जान बचाई उसकी सभी लोग तारीफ कर रहे हैं.

सांप के काटते ही बेहोश गई थी बच्ची

डिमरापाल अस्पताल के अधीक्षक और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनुरूप साहू ने बताया कि बीते 17 जून को बीजापुर जिले के मद्देड़ थाना क्षेत्र के तोयनार निवासी अनिल उरसा अपनी 10 माह की बच्ची अल्पना को बिहोशी की हालत में लेकर जगदलपुर पहुंचे. परिजनों ने बताया कि 16 जून की रात को परिवार के साथ सो रही बच्ची को अचानक करैत सांप ने डस लिया. बच्ची की रोने की आवाज सुन परिजनों ने सांप को देखा. जिसके बाद बच्ची को तत्काल ही बीजापुर अस्पताल ले जाया गया. जहां से उसे बेहतर उपचार के लिए 17 जून को डिमरापाल अस्पताल में रेफर किया गया.

97 घंटे वेंटिलेटर पर रही बच्ची

डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची को जिस समय अस्पताल लाया गया वह बेहोशी की हालत में थी. बच्ची की हालत को देखते ही उसे तत्काल वेंटिलेटर पर रखा गया. जहां 4 दिनों तक शिशु वार्ड के चिकित्सकों से लेकर स्टाफ नर्स ने 24 घंटे बच्ची को निगरानी में रखा. आखिरकार 97 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद बच्ची को वेंटिलेटर से बाहर निकाला गया. उसके बाद बच्ची को सामान्य वार्ड में रखकर उसकी पूरी देखरेख जारी रखी. डॉक्टरों और नर्सों की मेहनत का नतीजा है कि बच्ची की जान बच गई.

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