मनीष सिसोदिया को आबकारी नीति मामले में बड़ा झटका, अदालत ने कहा- जमानत याचिका पर अभी सुनवाई नहीं
नई दिल्ली
आम आदमी पार्टी (आप) नेता मनीष सिसोदिया ने आबकारी नीति मामले में सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। अदालत ने सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज कर दी है। बता दें कि इस मामले में सिसोदिया ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई द्वारा दर्ज मामलों में सिसोदिया की जमानत याचिका को खारिज किया था।
शीर्ष अदालत ने क्या कहा?
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई के आरोप पत्र दाखिल करने के बाद सिसोदिया फिर से जमानत के लिए याचिका दायर कर सकते हैं। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और संदीप मेहता की पीठ के समक्ष ईडी और सीबीआई के ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियां 3 जुलाई तक आरोप पत्र दाखिल करेंगीं।
सिसोदिया ने वकील ने की जमानत की मांग
अदालत में सिसोदिया की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से जमानत की मांग करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी नेता 15 महीनों से हिरासत में हैं और इस मामले में अभी तक ट्रायल भी नहीं हुआ है। हालांकि, अदालत ने कहा कि सिसोदिया की जमानत याचिका पर अभी सुनवाई नहीं हो सकती।
क्या है कि दिल्ली का आबकारी नीति मामला?
17 नवंबर 2021 को दिल्ली सरकार ने राज्य में नई आबकारी नीति लागू की। इसके तहत राजधानी में 32 जोन बनाए गए और हर जोन में ज्यादा से ज्यादा 27 दुकानें खुलनी थीं। इस तरह से कुल मिलाकर 849 दुकानें खुलनी थीं। नई आबकारी नीति में दिल्ली की सभी शराब की दुकानों को प्राइवेट कर दिया गया। इसके पहले दिल्ली में शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी और 40 प्रतिशत प्राइवेट थीं। नई नीति लागू होने के बाद 100 प्रतिशत प्राइवेट हो गईं। सरकार ने तर्क दिया था कि इससे 3,500 करोड़ रुपये का फायदा होगा।
सरकार ने लाइसेंस की फीस भी कई गुना बढ़ा दी। जिस एल-1 लाइसेंस के लिए पहले ठेकेदारों को 25 लाख देना पड़ता था, नई आबकारी नीति लागू होने के बाद उसके लिए ठेकेदारों को पांच करोड़ रुपये चुकाने पड़े। इसी तरह अन्य कैटेगिरी में भी लाइसेंस की फीस में काफी बढ़ोतरी हुई।