छत्तीसगढ़

नसबंदी के बाद गर्भवती हुई महिला, कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग की मानी लापरवाही, दिया ये आदेश

अम्बिकापुर

अंबिकापुर में नसबंदी कराने के बाद विवाहिता के गर्भवती होने एवं पुत्री को जन्म देने के एक मामले में स्थायी लोक अदालत अंबिकापुर ने परिवार को 23 लाख रुपये देने का आदेश स्वास्थ्य विभाग को दिया है। उक्त क्षतिपूर्ति की राशि के भुगतान का आदेश बीएमओ वाड्रफनगर एवं सीएमएचओ, अंबिकापुर को दिया गया है। बच्चे के पालन-पोषण के लिए तीन लाख रुपये तत्काल देने एवं शेष 20 लाख रुपये की राशि अगले 15 वर्षों के लिए किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि खाता खोल कर जमा करने का आदेश न्यायालय ने जारी किया है।

स्थायी लोक अदालत अंबिकापुर के न्यायालय में महिला शांति रवि पति बुधन कुमार लहरे की ओर से परिवाद अधिवक्ता सुशील शुक्ला के माध्यम से पेश किया गया था। परिवाद में नसबंदी के बाद विवाहिता के गर्भवती होने एवं पुत्री के जन्म को स्वास्थ्य सेवा में कमी मानते हुए महिला को शारीरिक, मानसिक और बच्ची के लालन-पालन में हो रही आर्थिक क्षति को आधार बनाकर 50 लाख क्षतिपूर्ति की मांग की गई थी। अधिवक्ता सुशील शुक्ला ने बताया कि प्रकरण की सुनवाई के दौरान केरल उच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत स्टेट ऑफ केरला विरुद्ध पीजी कुमारी अम्मा के मामले में 13 दिसंबर 2010 को दिए गए फैसले का उदाहरण पेश किया गया। मामले की सुनवाई करते हुए अंबिकापुर की स्थायी लोक अदालत (जनोपयोगी सेवाएं) की अध्यक्ष उर्मिला गुप्ता ने स्वास्थ्य सेवाओं में कमी मानते हुए इसे स्वास्थ्य सेवाओं में कमी माना।

स्थायी लोक अदालत ने अपने फैसले में क्षतिपूर्ति की उक्त राशि मे प्रकरण आवेदन दिनांक 29 नवंबर 2021 से अदायगी दिनांक तक छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से साधारण ब्याज जोड़कर देने का आदेश जारी किया है। न्यायाधीश ने आवेदक महिला को तीन लाख नगद अथवा शेष 20 लाख की राशि एक नवंबर 2038 तक के लिए किसी राष्ट्रीयकृत बैंक के सावधि खाते में जमा करने के आदेश दिए हैं। आपात स्थिति में न्यायालय की अनुमति से भी राशि आहरित करने की सुविधा न्यायालय ने दी है।

See also  अमित बघेल ने किया थाने में सरेंडर, पुलिस ने 5 हजार रुपए का रखा था इनाम

यह था मामला-
बलरामपुर जिले के वाड्रफनगर ब्लाक अंतर्गत शारदापुर निवासी शांति रवि पति बुधन कुमार लहरे ने उसके एक पुत्र एवं दो पुत्रियों के जन्म के बाद नसबंदी के लिए बीएमओ वाड्रफनगर के कार्यालय में पंजीयन कराया था। पंजीयन के बाद परामर्शदाता अमल किशोर पटवा के साथ वह जिला अस्पताल अंबिकापुर पहुंची। यहां 24 दिसंबर 2019 को उसकी नसबंदी की गई और उसे इसका प्रमाण पत्र भी दिया गया। नसबंदी के कुछ माह बाद उसे पता चला कि वह गर्भवती है। जब वह परामर्श के लिए वाड्रफनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक के पास गई तो एबार्सन में प्रसूता को जान का खतरा बताया गया। महिला ने 12 अक्टूबर 2020 को पुत्री को जन्म दिया। नसबंदी असफल होने पर उसे प्रत्येक तीन माह में गर्भ निरोधक टीका लगवाने की सलाह दे दी गई।

स्वास्थ्य विभाग का तर्क न्यायालय ने किया खारिज-
न्यायालयीन सूत्रों के अनुसार प्रकरण की सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य विभाग ने अपना पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि नसबंदी सहमति पत्र में स्पष्ट उलेखित है कि नसबंदी के दो सप्ताह तक गर्भ निरोधक साधनों का उपयोग करना होगा। महिला को गर्भ निरोधक साधन उपलब्ध कराए गए थे, लेकिन उन्होंने उपयोग नहीं किया। नसबंदी असफल होने का भी उल्लेख सहमति पत्र में रहता है, जिसमें किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यदि नसबंदी के बाद भी गर्भ ठहरने की स्थिति में दो सप्ताह के भीतर जिम्मेदार शासकीय चिकित्सक को सूचना देने का प्रविधान है, लेकिन इस प्रकरण में ऐसा नहीं किया गया है,इसलिए महिला क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त करने का अधिकार नहीं रखती है। न्यायालय ने कहा कि गर्भ ठहरने के बाद ही महिला ने चिकित्सक से संपर्क किया था, लेकिन एबार्सन में प्रसूता की जान से खतरा बताया गया था। स्वास्थ्य विभाग की दलीलों को खारिज करते हुए न्यायालय ने इसे स्वास्थ्य सेवा में कमी का प्रकरण मानते हुए फैसला सुनाया है।

See also  ट्रैक्टर पलटने से दो नाबालिगों की मौत, ड्राइवर गंभीर रूप से घायल

Related Articles

Leave a Reply